हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

कुछ पल ऐसे होते है..

कुछ पल ऐसे होते है , ओंठो पे हँसी आँखों में आंसू होते है ।
व्याकुल होते कुछ कहने को , ओंठो पर वक्त के ताले होते है ।
कुछ होती   है बाते ऐसी ,  हम  समझ नहीं उन्हें पाते है ।
जब समझ हमें वो आती है , समय चूक हम जाते है ।
कुछ लोग दिलो में बसकर भी , दिल को चोट  पहुँचाते है ।
अंजाने में ही जाने कब , कुछ अपने बेगानों से हो जाते है ।

जिसको दिल ने अपना कहा , कैसे अब अलविदा उसे कह दें ।
लेकिन जब हो दिल ही  दुखा ,  क्यों ना दिल की हम कह  दें ।
वो भूल हमारी अपनी थी ,  पहचान सही ना कर पाए ।
स्वप्नों में ही रहे भटकते , ठोस धरातल पर ना आये ।
मजबूरी   है अपनी अब देखो ,  ओंठो पर हँसी रखनी है ।
दिल रोये भले ही कितना , चेहरे पर मुस्कान रखनी है ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

9 टिप्‍पणियां:

रेखा ने कहा…

सटीक और सुन्दर प्रस्तुति ....

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट चर्चा मंच 9/2/2012 पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-784:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

Pallavi saxena ने कहा…

सुदर रचना!

Vivek Mishrs ने कहा…

Aapka aabhar ki aapne meri post charcha manch par samil kiya.
Punah Dhanyawad

vidya ने कहा…

बहुत खूब...
अच्छे भाव हैं आपकी रचना में..

शुभकामनाएँ.

govind pandey ने कहा…

काफी कठोर शब्दों में भावनाओं की प्रस्तुति "वो भूल हमारी अपनी थी...". अच्छी अभिव्यक्ति है, सराहनीय है.

Vivek Mishrs ने कहा…

Govind ji.. dhanyawad
Me yahi kahunga ki...
Kthoor sabdo par na jaye mere...bas bhavo par hi dhyan de.
Sabdo ka kya vo to youn hi kuch bhi ho sakate hi.. bhavo ko pahachano jo dil me hi basate hi.

govind pandey ने कहा…

जनाब, भावनाओं को शब्द के माध्यम से ही प्रस्तुत किया जाता है.

रचना दीक्षित ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति अच्छी अभिव्यक्ति और नेक विचार.

बधाई.

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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