तुम लाख छिपाओ राज मगर , जग को पता चल जायेगा ।
आदर्शो का तेरा आडम्बर अब , अधिक नहीं चल पायेगा ।
जो कदम तुम्हारे भटक रहे , वो अपना बयां कह जायेंगे ।
तेरे पाखंडो के अवशेषों से , हम राज तुम्हारा पाएंगे ।
तुमने चुने जो सिपहसलार , वो ही तुम्हे भटकायेंगे ।
जब फंसेगी उनकी गर्दन तब , वो ही तुम्हे फंसायेंगे ।
अपनी जान बचाने के हित , बकरा तुम्हे बनायेंगे ।
तेरे पाप की सभी गगरिया , चौराहे पर लायेंगे ।
ये मत सोचो जग में तुम , सदा रहोगे अपराजित ।
शीश कटा कर औरों का , सदा रहोगे कालविजित ।
एक दिन वो भी आएगा, जब जग तुमको बिसरायेगा।
भूली बिसरी बातों में ही , फिर नाम तुम्हारा आएगा ।
(मूलतः अपने कार्य क्षेत्र में किसी को लक्ष्य कर कभी लिखा था इसे )
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
4 टिप्पणियां:
अच्छी कविता की यही खूबी होती है कि वह कई अवसरों पर सटीक प्रतीत होती है.
सार्थक सन्देश देती हुई रचना ...
sandesh parak sundar rachana...abhar
इस कविता का तो जवाब नहीं !
सार्थक सन्देश देती हुई रचना
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