खोल दो तुम द्वार दिल के , बाँह फैलावो जरा ।
तुमसे मिलने के लिए , द्वार पर हूँ मै खड़ा ।
तुमने भी सोचा न होगा , वापस मै फिर आऊंगा ।
भूल कर तेरी बेवफाई , तुझसे वफ़ा फिर चाहूँगा ।
क्या करूँ इन्सान हूँ , दिल से मै हैरान हूँ ।
आदते इन्सान की , पाकर मै बेहाल हूँ ।
जो हुआ वो भूल कर , क्यों न हम फिर साथ चले ?
क्या हुआ जो राह में , अवरोध है अब भी खड़े ।
तुमको लगता है अगर , तुम साथ मेरे चल पावोगे ।
हाथ में अपने सदा , तुम हाथ मेरा पावोगे ।
तो सोंच लो एक बार फिर , मै द्वार पर तेरे खड़ा ।
तुझको गले लगाने को , मै बाँह फैलाये खड़ा ।
जो हुआ वो भूल कर , क्यों न हम फिर साथ चले ?
क्या हुआ जो राह में , अवरोध है अब भी खड़े ।
तुमको लगता है अगर , तुम साथ मेरे चल पावोगे ।
हाथ में अपने सदा , तुम हाथ मेरा पावोगे ।
तो सोंच लो एक बार फिर , मै द्वार पर तेरे खड़ा ।
तुझको गले लगाने को , मै बाँह फैलाये खड़ा ।
3 टिप्पणियां:
bahut achha laga
कोमल अहसासों से युक्त सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर कोमल भावों को संजोये हुए शब्द ...
लाजवाब कविता
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