बचपन में दादा जी के मुह से सुना था " अंधेर नगरी चौपट राजा, सवा सेर भाजी सवा सेर खाझा " पर क्या ये बात सिर्फ कहानियों तक ही सीमित है ? शायद नहीं , तो सुने .............
चाटुकारिता वहां पनपती,अंधकार का राज जहाँ हो,
आडम्बर पलता बढता है।
मात्र दिखावा करने से ही,
जीवन यापन चलता है।
सच का होता मूल्य नहीं,
ना कोई पारखी होता है।
कोरे होते सिद्धांत सभी ,
आदर्श खोखला होता है।
नव पथ का होता श्रजन नहीं,
गणेश परिक्रमा होता है।
सच को झूंठ ,झूंठ को सच,
मनमाना निर्णय होता है।।
तृप्त अहम् को मिलता है।
अपना हिस्सा पाने को,
बस गुप्त होड़ तब चलता है ।
आम को आम नहीं कहकर,
जग उसको इमली कहता है।
कुत्ते के पिल्लों को जग,
जंगल का राजा कहता है।
ऐसे चौपट राजा का ,
राज जहाँ भी चलता है।
वह राज्य छोड़ कर दूर कहीं,
बंजर में रहना अच्छा है।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
सार्थक व सराहनीय प्रस्तुती ,सत्य को उजागर करती शानदार पोस्ट ...
उत्तम: प्रयास:
शोभनं काव्यम्
ब्लाग जगत पर संस्कृत प्रशिक्षण की कक्ष्या में आपका स्वागत है ।
http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/ पर क्लिक करके कक्ष्या में भाग ग्रहण करें ।
यथार्थ को प्रस्तुत करती है आपकी रचना.
एक टिप्पणी भेजें