१.
चल पड़े मेरे कदम , जिंदगी की राह में ।
दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने।
जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो ।
जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो ।
बनकर घटा-घनघोर सी , कब कहाँ बरस जाय वो ।
क्या पता उस राह में , हमराह होगा कौन मेरा ?
ये खुदा ही जानता , या जानता जो साथ होगा।
२.
कारवां की खोज में , क्यों भटकते आप हों ?
तुम सफ़र अपना करो , कारवां मिल जायेगा।
क्यों है हसरत साथ की , जब तुम अकेले आये हो ।
एक दिन सब छोड़ कर , सब फिर अकेले जायेंगे ।
भूल से तुझको कहीं , साथी अगर मिल जायेगा ।
तेरा दिल रोयेगा जब , वक्त बिछुड़ने का आएगा ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
अच्छी अभीव्यक्ति ,,,सुन्दर शब्दों से सजी सुन्दर रचना !!!१ बधाई स्वीकारे ,,,शब्दों के इस सुहाने सफर में आज से हम भी शामिल हो रहे है ,,,,
भूल से तुझको कहीं, साथी अगर मिल जाएगा।
तेरा दिल रोएगा जब, वक्त बिछुड़ने का आएगा।
बहुत अच्छे भाव हैं।
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