सही कहा ये बात किसी ने , खाली मन शैतान का ।
जब चाहे वो आ जाये , मन को तेरे अपना बनाये ।
जाने क्या क्या तुझे सिखाये , मन में कैसे भाव उठाये ।
सही गलत का अंतर मिटा , मन को तेरे वो भरमाये ।
अभी पुण्य तुम करते थे , अभी पाप की जन्मी इच्छा ।
अभी दोस्ती कर पाए थे , अभी दुश्मनी की है इच्छा ।
अभी बगावत थामी थी , अभी हो गए स्वयं ही बागी ।
अभी अभी थे तुम बैरागी , अभी तुरंत ही लालच जागी ।
अब तक थे तुम ब्रह्मचारी , अभी हो गया मन व्याभिचारी ।
अभी स्वयं में सक्षम थे , अभी क्यों मन में है लाचारी ।
यूँ ही खाली रहता जब मन , बनती बिगड़ती अभिलाषाए ।
पल में विपरीत से भावो की , करती पुष्टि रुधिर शिराए ।
ऐसे ही जाने कितने पल , मै भी खाली बैठा रहता ।
कुछ ऊल जलूल विचारो की , सीढ़ी मै चढ़ता रहता ।
उसमे से कुछ एक कभी , मेरी हकीकत को झूंठलाते ।
मन में मेरे तूफ़ान उठा , मुझको वो अति ललचाते ।
जब तक वापस ध्यान कहीं , किसी और तरफ न जाता है ।
वही पुरानी मन की इच्छा , जाने क्या क्या करवाता है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG