'अनंत' तुम्हे समझाता हूँ ,
थोड़ा सा चालाक बनो ।
है दुनिया अपने मतलब की ,
ज्यादा न बेताब बनो ।
है हाल बुरा सम्बन्धों का ,यहाँ खून के रिश्ते भी ,अपना मतलब ढोते हैं ।बिना किसी मतलब के यहाँ ,कब कोई रिश्ते होते हैं ।
नातों को सब भूले हैं ।
ठोक-बजाकर,मोल-भाव कर ,
रिश्तों को सब जीते हैं ।
दिल में कुछ चेहरे पर कुछ ,भाव सदा सब रखते हैं ।भूले-भटके गलती से ही ,कुछ रिश्ते सच्चे होते हैं ।
वो भाग्यवान होते हैं जिनको ,
सच्चे रिश्ते मिलते हैं ।
रिश्तो के बाजार में जिनको ,
काँच में हीरे मिलते हैं ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG