हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 28 सितंबर 2010

सावधान ! हे पथिक

सावधान ! हे पथिक , तुम लक्ष्य से भटक रहे ।
छोड़ कर तुम राह को , पगडंडियों पर चल रहे ।
दूर है मंजिल तेरी , अनगिनत अवरोध हैं ।
राह में रुकना नहीं , क्या इसका तुमको बोध है ?
तूने किया था प्रण ये , लक्ष्य को पायेगा तू ।
यूँ भटक कर राह में , कैसे पहुँच पायेगा तू ?

सावधान हो पथिक , लक्ष्य अभी अविजित है । 
कर्म से ही संसार का , भाग्य भी सृजित  है ।
याद कर तू प्रण अपना , जो पूरा होना है अभी ।
देर है किस बात कि , तुझको सम्भलना  है अभी ।
गलतियाँ जो हो गयीं , प्राश्चित उसका भी है ।
लक्ष्य से भटका है तू , लक्ष्य जीवित अब भी है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

prerak prastuti

विवेक सिंह ने कहा…

वाह वाह !

बहुत सुंदर कविता ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

वाह्! बेहतरीन रचना...

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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