मुझे मिला था एक ज्योंतिषी ,
जिसने भविष्य बताया मेरा ।
बोला जातक लिखा भाग्य में ,
जल के प्राणी से अहित है तेरा ।
जल के प्राणी से अहित है तेरा ।
यूँ जल में रहते प्राणी बहुत ,
मगर मगर सभी पर भारी है ।
तेरी किस्मत में शत्रु कई हैं ,
जो मगर के जैसे व्यवहारी है ।
तो बच के रहना जलाशय से ,
न अन्दर जाना उसके तुम ।
अगर कभी हो जाना जरूरी ,
मन में बैर न लाना तुम ।
दूर ही रहना सदा मगर से ,
ना उससे बैर निभाना तुम ।
कर सको अगर तो मगर से ,
सदा मित्रता निभाना तुम ।
मगर मगर सभी पर भारी है ।
तेरी किस्मत में शत्रु कई हैं ,
जो मगर के जैसे व्यवहारी है ।
तो बच के रहना जलाशय से ,
न अन्दर जाना उसके तुम ।
अगर कभी हो जाना जरूरी ,
मन में बैर न लाना तुम ।
दूर ही रहना सदा मगर से ,
ना उससे बैर निभाना तुम ।
कर सको अगर तो मगर से ,
सदा मित्रता निभाना तुम ।
मैंने कहा सुनो ऐ पंडित ,
रीत कहे तुम बहुत पुरानी ।
आवो तुम्हे बताता हूँ अब ,
नीति जो मैंने है अजमानी ।
प्रीति मुझे दिलवालो से है ,
नफ़रत दिल के कालो से है।
मगर भी उनमे ही आता है ,
मुझको कभी नहीं भाता है ।
आदत मगर की बहुत बुरी है ,
रिश्तो की उसे कहाँ पड़ी है ?
किया मित्रता अगर मगर से ,
मारे जाओगे तुम गफलत से ।
भूँख लगेगी जब उसे जोर से ,
खा जायेगा वो तुम्हे प्यार से ।
खा जायेगा वो तुम्हे प्यार से ।
तुमको खाकर जब सुस्तायेगा ,
तेरी याद में झूंठे आंसू बहायेगा ।
तुम दूर ही रहना पानी से ,
हो डरते अगर दुश्मनी से ।
हो अगर जरुरी जल में जाना ,
तो मगर से सदा बैर निभाना ।
बैर करोगे जब तुम उससे ,
फिर सदा सचेत रहोगे उससे ।
फिर एक दिन वो भी आएगा ,
तेरे कारण परलोक वो पायेगा ।
जब कन्धा उसे लगाने जाना ,
चीख-चीख कर उसे मित्र बताना ।
हालाँकि है यह नीति उलट ,
पर देगी यही हालात पलट ।
कांटे का जबाब यह छूरी है ,
बल्लम का जबाब भाला है ।
कौटिल्य सानिध्य में रहकर ,
हाँ मैंने यह रीति निकाला है ।
कौटिल्य सानिध्य में रहकर ,
हाँ मैंने यह रीति निकाला है ।
3 टिप्पणियां:
अच्छी पोस्ट
रक्षा बंधन पर्व की बधाइयाँ
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