हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

गंगाजल..

जब जब गंगाजल से हम , अपने कुछ पाप धुलाते है ।
जाने अंजाने गंगाजल को , मलिन पतिति कर जाते है ।
गंगा बेचारी क्या बोले , हम आवाज कहाँ सुन पाते हैं ।
कानो में रूई ठूंस सदा , हम अपने स्वार्थ निभाते हैं ।
वो तो बस अवतरित हुयी , जग के सब पाप मिटाने को ।
पापी जनों के पाप सभी , अपने संग लेकर जाने को ।

हमको क्या हम सब यूँ ही , अपने कर्मो को करते हैं ।
अपने पापो को देकर उसे , तन स्वच्छ अपना करते है ।
फिर चाहे जितनी मैली हो , या कितनी वो पतित बनी रहे ।
हमको उससे क्या लेना देना , स्वार्थ हमारा पावन बना रहे ।
अपने इन्ही गुणों के कारण , वो पतित पावनी कहलाती है ।
सारे जग के सब पाप समेटे , सागर से मिलाने वो जाती है । 

युगों युगों से प्रथा सदा , ये अब तक चलती आयी है ।
संतानों के दुष्कर्मो का  , माता ही सदा दुःख पायी है ।
कब हमको परवाह हुयी , अपनी गंगा माँ की पीड़ा का ।
कब हमको आयी याद , अपने पाप कर्म की क्रीणा का ।
हमने थामा आँचल सदा , अपनी पतित पावनी माता का ।
उसके आँखों के अश्रुओ से  , गंगाजल को हमने रच डाला ।


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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

कोई कारण नहीं..

कोई कारण नहीं अकारण ही क्यों , तेरी साख पर मै बट्टा लगाऊ ।
तेरे धवल स्वेत वस्त्रो पर अकारण , अपनी कलम से धब्बे लगाऊ ।
तेरे उजले चहरे पर कालिख मलू , गधे पर तुमको उल्टा बिठाऊ 
तेरे नाम की एक तकथी बनवाकर , तेरे गले में उसको लटकाऊ ।
गली-गली चौराहों पर क्यों , जूतों से मै तेरा पुतला सजवाऊ ।
तुझको व्यर्थ अकारण ही क्यों , इतना मान-सम्मान दिलाऊ ।

बहुत दिनों से हर हफ्ते तुम , गुंडों को हफ्ता देते हो 
एक मुस्त धनराशी हमेशा , तुम सरकारी चंदा देते हो ।
अपने हाथो क़त्ल किसी का , कभी नहीं अब करते हो ।
कानून और रखवालो से , स्वप्न में भी नहीं डरते हो ।
हर बार घोटाला करके भी , सहयोग जांच में करते हो ।
भूले भटके कभी नहीं तुम , मेरा नाम उसमे रखते हो ।

कोई कारण नहीं अकारण क्यों , तुझको अतिरिक्त सम्मान दिलाऊ ।
तुम जनसेवक हो तो महापुरुष की , तुझको क्यों मै पदवी दिलवाऊ ।
मोस्ट वांटेड की कड़ियों में , मै तेरी सुन्दर तस्वीर भिजवाऊ ।
राष्ट्रीय नेता से उठाकर तुझको , अंतर-राष्टीय छवि दिलवाऊ ।
जो भी हो तुम महा-महान , गाता हूँ मै तेरा यशोगान ।
करना क्षमाँ मेरी भूलो का , न लेना मुझसे मानहान ।


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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

अपनो के प्रति मेरा प्रेम्…

बचपन से मुझे अपनो के प्रति , अतिशय प्रेम लगाव था ।
आदरभाव और अपनेपन का , अतिशय मुझमे भाव था ।
नाना-नानी , दादा-दादी , चाचा-चाची, मासी और मामा ।
जब भी मिलता मै उनसे , मिलकर हो जाता था गामा ।
गाँव की गलिया , खेत के मेंड  , खलिहानो की पगडण्डी ।
आम के बाग मे खेला करते , गर्मी की होती जब छुट्टी ।

जितना ही अपनो के प्रति , रहता था मेरे मन मे प्यार ।
उससे ज्यदा ही मै पाता , अपने लिये अपनो से प्यार ।
ननिहाल से जब वापस जाता , या ददिहाल से वापस आता 
सब लोग भेजने आते थे , जब भी उनसे दूर कहीं मै जाता ।
गाँव की सीमा तक सब आते , फ़िर करके विदा खडे रह जाते
मै भी दूर तक उन्हे ताकता , पलट-पलट कर देखता जाता ।

जब तक दिखते नाना-नानी , उनके लिये  तडपता जाता ।
जैसे दिखना होते बन्द , दादा-दादी की याद मै पाता ।
यूँ ही दादा-दादी को भी , कुछ दूर राह मे रखता याद ।
वो जैसे नजर से होते दूर , भूल मै जाता उनकी याद ।
कहते थे सारे ही मुझको , इसे प्यार जहाँ तक नजर गया ।
ज्यो ही नजर हटी सब भूला , और माया मोह से दूर गया ।

सुनकर मुझको बुरा था लगता , मै था अपने दिल का सच्चा ।
कहता मै सब लोग गलत है , मै तो हूँ एक प्यारा सा बच्चा ।
फ़िर ज्यों ज्यों होता गया बडा, स्वयं ही बात समझ मे आया ।
प्यार असीमित है अपनो से, पर माया मोह से ना बँध पाया ।
अब भी मेरा हाल वही है, मन मे चाहत का अम्बार मै पाता ।
मगर नजर से हुआ जो दूर, वो दिल के कोनो मे छिप जाता ।
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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

मन मेरा..

आज फिर उदास हूँ शायद , कुछ याद आ रहा है शायद ।
कुछ बोझिल सा है मन मेरा ,तेरी याद आ रही है शायद।
हैरत है क्यों बदल न पाया , चाह कर भी आदत अपनी ।
शब्दों से ही रहता खेलता , करने को व्यक्त व्यथा अपनी ।
लिखता हूँ कुछ शब्दों को , फिर स्वयं ही कटता हूँ उनको ।
यूँ ही अर्थ बदलता बारम्बार , स्वयं बोला था मैंने जिनको ।
हाँ सही कहा था तुमने शायद , है बच्चो जैसा मन मेरा ।
पल में लालयित पल में शांत , कुछ ऐसा ही है मन मेरा ।
जो मन को मेरे भा जाये , ततक्षण मुझे चाहिए बस वो ।
जो मन को मेरे भरमाये , स्वीकार नहीं मुझे भूले से वो ।
जो मेरा है बस मेरा है , मै कैसे उसका बँटवारा कर दूं ।
जो मेरा नहीं है अब तक ,मै कैसे उसको प्यारा कह दूं ।
जितना सीधा है दिल मेरा , उतना ही उलझा मन मेरा ।
तिल का ताड़ बनाने में सब कहते माहिर है मन मेरा ।
दोष नहीं कुछ इसमे मेरा , सत्य खोज ही लेता मन मेरा ।
बात गलत है अगर कोई , स्वीकार नहीं करता मन मेरा ।
अपनी भूलो को क्षण में , स्वीकार भी करता है मन मेरा ।
मगर तेरे भ्रमजाल में मित्रो , नहीं उलझता है मन मेरा ।


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बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

तू कब तक आएगी ...

तू चैन है मेरे दिल की और , हमराज है मेरे राजो की ।
फिर भी तू मुझे सताती है , क्यों दूर यूँ मुझसे जाती है ।
तू पल दो पल को आती है , पल भर में गायब हो जाती है ।
मुझे तडफता देख के शायद , तू कहीं मंद मंद मुस्काती है ।
मै तो तेरी आहत से भी , हर पल चौकन्ना रहता हूँ ।
पलक पावड़े बिछा कर , सदा तेरी राह ही तकता हूँ ।

शाम ढले ही मै अपना , बिस्तर रोज सजाता हूँ ।
प्यारी भीनी खुशबू से , फिर उसको महकाता हूँ ।
नजर बचाकर सबकी , खिड़की से झांक भी आता हूँ ।
तेरी खातिर दरवाजो को , मै खुला छोड़ कर आता हूँ ।
रोज यही करता सदा , फिर मुश्किल से मिल पाता हूँ ।
करते करते इंतिजार तेरा , वो बेवफा मै थक जाता हूँ ।

यदि नहीं मै तुझको भाता हूँ , क्यों तू आस जगाती है ।
तड़फ उठा कर दिल में ,  क्यों तू मुझको ललचाती है ।
देर रात जब आती है तू , मुझे सुबह देर हो जाती है ।
तेरे कारण मेरी जग में , बदनामी बहुत हो जाती है ।
यूँ रोज रात दो-तीन बजे , तू कब तक पास मेरे आएगी ।
मेरी 'नींद' तू होकर भी , क्यों समय से न मुझे सुलायेगी ।



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रविवार, 19 फ़रवरी 2012

खोल रहा हूँ पुन: सभी..

खोल रहा हूँ पुन: सभी , मै बंद हो चुके द्वारों को ।
घर आँगन से लेकर , दिल के बंद किवाड़ो को ।
बहुत दिनों तक बंद रहे , ये छोटे अभिमानो में ।
आज खोलता हूँ मै इनको , बिना किसी बहाने के ।
चरर मरर  कर रहे है देखो , खुलते हुए कपाट सभी ।
निश्चित ही वो तुम्हे बुलाते , आने को इस पर अभी ।
नया सबेरा नयी धूप को , पाने में मै डूब गया ।
तंग हो चुकी दुनिया से , मै स्वयं ही चलकर दूर हुआ ।
अगर भरोसा हो कुछ तुमको , स्वयं ही चलकर आ जाओ ।
खुले द्वार पर बिछे हुए इन , पुष्पों को ना तुम मुरझाओ ।
जब खोल दिए है द्वार सभी , कुछ तो मै बदला ही होऊंगा ।
केवल दिखावा करने को क्यों , मै इतना उद्धत अब होऊंगा ।
टूट रही थी सांसे मेरी , इन सील बंद कपाटो में ।
भटक रहा था मन मेरा , तेरे किये सवालों में ।
मिला नहीं मुझे उत्तर कोई , भटक कर देखो चूर हुआ ।
मिटा सभी अभिमानो को , अपमानो से मै दूर हुआ ।
लो खोल दिए है द्वार सभी , स्वागत है अब फिर तेरा ।
जिसे आना हो वो आ जाए , जो भी बनाना चाहे मेरा ।
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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

अभिलाषाए...

जीवन की अभिलाषाओं  का , कितना ही हम मान करे ।
उन्हें पूर्ण करने के खातिर ,कितना ही हम कार्य करे ।

जीवन की अभिलाषाए कब ,किसकी पूर्ण हुयी अब तक ।
कहाँ अंत होता है इनका , हम कितना ही उन्माद करे ।

रक्तबीज सी ये रहती जन्मती , रावण जैसी  ये अमर रहे ।
सदा बसी रहती ये मन में , कितना ही हम त्याग करे ।


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देख मेरा दीवानापन..

लो देख तेरा दीवानापन , मै प्यार तुम्ही से कर बैठा ।
किया नहीं था अब तक , इकरार तुम्ही से कर बैठा ।
बहुत संभाला दिल को पर , मै दिल तुमको ही दे बैठा ।
तुझे बसाकर दिल में अपने , इजहार तुम्ही से कर बैठा ।
अपने हाथो मैंने गंवाई , स्वयं अपने दिल की चाभी यूँ ।
बस देख तेरा दीवानापन , मै बन गया एक परवाना यूँ ।

अब देख मेरा दीवानापन , मै मस्तानो सा फिरता हूँ ।
भूल कर सारी दुनिया को , मै तुझे खोजता रहता हूँ ।
एक तेरे नाम का एकतारा , मै सदा बजाया करता हूँ ।
तेरे रुपहले चहरे से ही , मै ख्वाब सजाया करता हूँ ।
तेरे प्रेम की मदिरा से , मै स्वयं को छकाया करता हूँ ।
अपना ये दीवानापन भी , मै जग से छुपाया करता हूँ ।

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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

परवाह नहीं...

परवाह नहीं जिनको मेरी , क्यों उनकी परवाह करू ।
रार ठानते है जो मुझसे , मै क्यों उनसे प्यार करू ।
रिश्ते नाते प्यार वफ़ा , सब बाते है अपनेपन की ।
अहंकार है व्यर्थ यहाँ , बात है फिर भी गैरत की ।
एक हाथ से कब बजती , ताली कहो कभी जग में ।
कैसे चल पाओगे तुम , यदि कांटे चुभे हो पग में ।

सब्र की भी सीमाए है , सीमाओ की भी सीमाए है ।
परवाह नहीं यदि तुमको , तो मेरी भी सीमाए है ।
भावो का भवसागर है , उसके पार है सबको जाना ।
अपना पराया कोई नहीं , खाली हाथ है सबको जाना ।
परवाह करू कब तक उनकी , जिनको है परवाह नहीं ।
मानव हूँ मै भी इस जग का , समझो मुझको देव नहीं ।

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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

जाने किसने बुलाया है...

ये जाने किसने बुलाया है , ये किसका आमंत्रण आया है ।
कुछ भूली बिसरी यादों से , ये कहीं निकल कर आया है ।
निश्चित इस पर नाम मेरा , और पता भी इस पर मेरा है ।
फिर भी अंजानेपन का क्यों , मेरे मन में अभी बसेरा है ।
सन्देश लिखा है इस पर इतना , मैंने मै को बुलाया है ।
जाने किसके मै ने मेरे , मै को स्वयं में बसाया है ।
संग लिखा हुआ है इस पर , बस मुझको ही बुलाया है ।
नहीं जगह घर में दो की , नहीं तुमको गया बुलाया है ।
आओगे यदि चलकर तुम , कपाट बंद ही पाओगे ।
लेकिन अपने घर से तुम , ना खली लौट के जाओगे ।
बना प्रश्न चिन्ह है केवल , नाम पते पर प्रेषक में ।
मै भी रोमांचित हूँ , शामिल होने को आमंत्रण में ।
जाने किसके मै ने मुझको , अपने मै में घेरा है ।
कौन है वो जो इतना ज्यादा, अपनेपन से मेरा है ।
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बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

कुछ पल ऐसे होते है..

कुछ पल ऐसे होते है , ओंठो पे हँसी आँखों में आंसू होते है ।
व्याकुल होते कुछ कहने को , ओंठो पर वक्त के ताले होते है ।
कुछ होती   है बाते ऐसी ,  हम  समझ नहीं उन्हें पाते है ।
जब समझ हमें वो आती है , समय चूक हम जाते है ।
कुछ लोग दिलो में बसकर भी , दिल को चोट  पहुँचाते है ।
अंजाने में ही जाने कब , कुछ अपने बेगानों से हो जाते है ।

जिसको दिल ने अपना कहा , कैसे अब अलविदा उसे कह दें ।
लेकिन जब हो दिल ही  दुखा ,  क्यों ना दिल की हम कह  दें ।
वो भूल हमारी अपनी थी ,  पहचान सही ना कर पाए ।
स्वप्नों में ही रहे भटकते , ठोस धरातल पर ना आये ।
मजबूरी   है अपनी अब देखो ,  ओंठो पर हँसी रखनी है ।
दिल रोये भले ही कितना , चेहरे पर मुस्कान रखनी है ।


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एक शब्द..

बस एक शब्द ही काफी है , भाव भंगिमा बदलने को ।
बस एक शब्द ही काफी है , रिश्तो की दिशा बदलने को ।
हर एक शब्द सक्षम है , किसी वाक्य का अर्थ बदलने में  ।
हर वाक्य भी सक्षम है , अभिव्यक्ति का भाव बदलने में  ।
सोचो कैसा अवसर है , और तुमको क्या कहना है यहाँ ।
है कौन शब्द नैसर्गिक और , है भाव कौन उपयुक्त यहाँ ।

किस मोड़ पर जाने अनजाने , तुमने किससे क्या बोला था ।
वो चाह रहा था सुनना क्या , और तुमने उससे क्या बोला था ।
है नहीं जरूरी शब्द सदा , अभिव्यक्ति को तेरे सम्बल दे ।
है नहीं जरूरी वाक्य सदा , भाव एक सा हर पल दे ।
महत्वपूर्ण है शब्द चयन , और वाक्य में कैसे पिरोया गया ।
कब किससे क्या कहना था , कैसे उन शब्दों को बोला गया ।

चूक गए यदि उचित शब्द , चूक जाओगे अवसर से  ।
बोले गए हर शब्दों का , परिणाम पाओगे जीवन से ।


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बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

एहसास नहीं है तुम्हे अभी..

एक बहुत पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ, 
प्रियजनो से  अनुरोध है कृपया इसे मेरे आज के सन्दर्भ में ना देखे अन्यथा अर्थ का अनर्थ होना ही है..

एहसास नहीं है तुम्हे अभी , क्या तुमने मेरे साथ किया ।
धोखा देकर मेरे दिल को , कितना मुझको आहत किया ।
तड़फाया है तुमने मुझको , ज्यो पानी के बाहर हो मीन ।
सम्बन्धो की बुनियाद हिली , पैरो तले है नहीं जमीन ।
आसन नहीं है रिश्ते जोड़ना , मुश्किल उसे चलाना है ।
आहत करके अपनो को , अति मुश्किल उन्हें मनाना है ।

फिर तुमने कैसे मान लिया , तुमको यूँ ही माफ़ करूँगा ।
भूल सभी घटनावों को , मै फिर से प्रेम की बात करूँगा ।
सुलग रहा यदि दिल मेरा , तुम भी चैन ना पाओगे ।
अपने अपराध के बोझ तले , घुट-घुट कर जी पाओगे ।
हंसी खुशी तुम रातों को , चैन से ना सो पाओगे  ।
धोखा दिया है तुमने मुझे , भूल कभी ना पाओगे  ।

आसन नहीं  बात समझाना , जाने बिना क्या बीती है ।
अपनी भूल को ओरो के सर , मढ़ना जग की रीति है ।
मै तड़फ रहा जिस तरह आज , ये तड़फ जान ना पाओगे ।
मेरे दिल को समझे बिना , बस यूँ ही अधिकार जमाओगे ।
है कितनी गहरी चोट लगी , ये कभी जान ना पाओगे ।
गैरो के जैसे ही कभी बस , तुम भी मुझको समझाओगे ।

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आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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