हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 11 जून 2013

मानव जीवन नदी का पानी...

मानव जीवन नदी का पानी , गुजरे घाट ना ठहरे पानी ।
घाट घाट का रूप निहारे , न बँधे किसी बंधन में पानी ।
माँ की कोख है इसका उदगम , किलकारे बचपन का पानी ।
मदमाती लहरे यौवन की , ना सहे किसी का जोर जवानी ।
एक बार जिस घाट से गुजरे , लौट ना देखे फिर से जवानी।
छाए बुढ़ापा जब तन पर , सिमटे धारा सूखे तब पानी ।

बहे मंद गति से जब पानी , आये याद बीती जिंदगानी ।
यौवन बचपन की बाते सारी , करे याद स्थिर सा पानी ।
चलते चलते आये सागर , हो जाये समाहित सारा पानी ।
जिसके अंश से उदगम होए , मिले अंत में उसी में पानी ।
ना नदी बचे ना धारा बचे , ना उसका कोई किनारा बचे ।
जीव मिले जा ब्रह्म में फिर से , सागर में हो ख़तम कहानी ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


1 टिप्पणी:

Pallavi saxena ने कहा…

अनुपम भाव संयोजन से सजी सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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