चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के महल में ,
लोभ, लिप्सा,वासना ही सदा पलती रही ।
काम, क्रोध, मद, लोभ ही ,
इस महल के शहंशाह ।
चौपड़ की बिसात बिछाकर ,
वो बुलाते सबको यहाँ ।
चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के भँवर में ,
डूब ही जाते सभी , बच कर निकालता कौन यहाँ ?
स्वार्थ और अज्ञानता का ,
हर तरफ दलदल यहाँ ।
पाँव टिकाओ तो कहाँ पर ,
अंधी अन्तर्वासना यहाँ ।
चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के भ्रमजाल में,
है भटकना सभी को , माया ठगनी है यहाँ ।
सिर पुरातन काल से ही ,
कौन बच पाया कहो ?
माया मोह के जाल से ,
कौन निकल पाया कहो ?
लोभ, लिप्सा,वासना ही सदा पलती रही ।
काम, क्रोध, मद, लोभ ही ,
इस महल के शहंशाह ।
चौपड़ की बिसात बिछाकर ,
वो बुलाते सबको यहाँ ।
चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के भँवर में ,
डूब ही जाते सभी , बच कर निकालता कौन यहाँ ?
स्वार्थ और अज्ञानता का ,
हर तरफ दलदल यहाँ ।
पाँव टिकाओ तो कहाँ पर ,
अंधी अन्तर्वासना यहाँ ।
चाहतो, ख्वाहिसों, हसरतो के भ्रमजाल में,
है भटकना सभी को , माया ठगनी है यहाँ ।
सिर पुरातन काल से ही ,
कौन बच पाया कहो ?
माया मोह के जाल से ,
कौन निकल पाया कहो ?
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें