वो स्वपन ही था जो वर्षो पहले , खुली आँख से देखा था ।
जब वही हकीकत में बदला , तो नींद नहीं अब आती है ।
खाना पीना छूट गया और , काम भी सारे भूल गया ।
यादो के मँझधार में अब , जीवन का किनारा भूल गया ।
अपना हाल बताऊ क्या , अब खुद को मेरा पता नहीं ।
ख्वाब हकीकत में बदला , या मेरी हकीकत ख्वाब हुयी ।
जब वही हकीकत में बदला , तो नींद नहीं अब आती है ।
खाना पीना छूट गया और , काम भी सारे भूल गया ।
यादो के मँझधार में अब , जीवन का किनारा भूल गया ।
अपना हाल बताऊ क्या , अब खुद को मेरा पता नहीं ।
ख्वाब हकीकत में बदला , या मेरी हकीकत ख्वाब हुयी ।
कुछ समझ नहीं अब पाता हूँ , तुम्ही बताओ क्या करू ।
अपना हाल सुनाऊ तुमको , या हाल तुम्हारा पता करू ।
शायद मुझसे ज्यादा अच्छा , तुमने जीना सीख लिया हो ।
जीवन के मझधार में नैया , तुमने खेना सीख लिया हो ।
मेरा क्या मै वैसा ही हूँ , जैसा तुमने छोड़ दिया ।
तेरी याद में मैंने अपने , जीवन को बेचैन किया ।
पहले मुझको खबर ना थी , क्या चीज दिल्लगी होती है ।
जब से मुझको खबर हुयी , खुद को भुलाकर आया हूँ ।
छोटी सी वो मेरी दिल्लगी , दिल को जलाने वाली है ।
आज नही तो कल निश्चयः ही , मुझे रुलाने वाली है ।
यादो के मझधार में मुझको , बहुत घुमाने वाली है ।
भावों की आती जाती लहरे , मुझे मिटाने वाली है ।
अपना हाल बताऊ क्या , अब मेरी हकीकत ख्वाब हुयी ।
ख्वाब हकीकत में बदला , या तीर दिलो के पार हुआ ।
फिर भी मुझसे कहते हो , मै ही तुमसे रूठ गया ।
देखो शायद तुम मे ही , मेरा सब कुछ छूट गया ।
कल तक राह दिखता था , हर भूले भटके राही को ।
आज फंसी जब मेरी कश्ती , राह मै सारी भूल गया ।
कल तक देता था मै सबको , जीवन की परिभाषाये ।
आज पड़ी जब मुझे जरुरत , भूल गया निज भाषाए ।
कल तक कितने लोगो को , मैं पार उतारा करता था ।
जब आज डूबता हूँ खुद , किसे पार लगाऊ तुम्ही कहो ।
अपना हाल सुनाऊ क्या , मैं दिल को जलाकर आया हूँ ।
तेरा तुझको क्या लौटाऊ , सब अपना गँवाकर आया हूँ ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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