इन्सान की जिंदगी का ,भूँख है एक आइना ।
भूँख चाहे पेट की , या कहो उसे जिस्म की ।
भूँख हो धन दौलत की , या फिर दर्शन की ।
भूँख हो चाहे युद्ध की , या भूँख हो शक्ति की ।
भूँख बदल देती यहाँ , इन्सान की सोंच को ।
भूँख बना देती यहाँ , हैवान इंसानियत को ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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