नींद आंखों मे उतरने लगी है मगर ,पलके बंद हो तो कैसे उलझा है दिमाग ।दिल तो कहता है सो जाओ अब चैन से ,दिमाग कहता है कर लो थोडा हिंसाब ।हल्की सी भी आहट से खुल जाती पलके ,है खटखटाते मस्तिष्क को कितने विचार ।जितना तुझको भुलाने की कोशिश मै करता ,उतना ही मन मे आता है फ़िर तेरा ख्याल ।सोंचता हूँ सीख लूँ अब खुली पलको से सोना ,सोया समझ धोखे से नही लोगे मेरी जान ।अटक जाती है मन मे बात छोटी हो या बडी ,विश्लेषण करना है आदत बुरी मेरी जान ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
bahut achchhi prastuti
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