जबतक आप किसी भी कार्य , लक्ष्य , अथवा सम्बन्धो हेतु पूर्णतया स्वयं अंतरमन से राजी नहीं होते ,
आप बाह्य दबाव अथवा कारको के प्रभाव में अपना सर्वोत्तम योगदान नहीं दे सकते हैं ।
और
जब तक आप हार्दिक रूप से प्रशन्न और भावविभोर नहीं होते , आप अपने अंतरमन को संतुष्ट नहीं कर सकते। फिर जब तक आपका ह्रदय रिक्त है आपका अंतरमन विरक्त ही रहेगा ।
और
जब तक आपका अंतरमन विरक्त है आप अपने अंदर ही विद्रोही को पालते रहेंगे जो आपकी हर रचनात्मकता और सकारात्मकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता रहेगा ।
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