चार दिनों की मींठी बाते , प्यार मोहब्बत रिश्ते नाते।
और भुला देते है वो फिर , दो पल में ही सारी बाते।
याद नहीं रह पाता उनको , अपनो का दिल से अपनापन।
याद भले रहता है उनको , कटु क्षण के कुछ तीखे पल।
उन्हें कहें हम क्या यारो , संवेदन शून्य है जो यारो।
उनका संग साथ में होना क्या , उन्हें पाना क्या और खोना क्या।
और भुला देते है वो फिर , दो पल में ही सारी बाते।
याद नहीं रह पाता उनको , अपनो का दिल से अपनापन।
याद भले रहता है उनको , कटु क्षण के कुछ तीखे पल।
उन्हें कहें हम क्या यारो , संवेदन शून्य है जो यारो।
उनका संग साथ में होना क्या , उन्हें पाना क्या और खोना क्या।
वो भटक रहे ज्यों कटी पतंग , कभी लटके यहाँ कभी लिपटे वहाँ।
कभी हवा के झोंको में बह निकले , कभी गिरे यहाँ कभी उड़े वहाँ।
तुम भी क्या दिल पर ले बैठे , गैरो की बे-गैरत को।
तुम जियो शान से यारा , अपनो में अपनी खुद्दारी को।
ये कोई चार दिनों की बात नहीं , ये जीवन भर की कहानी है।
यहाँ अपना पराया कोई नहीं, सब मतलब की दुनियादारी है।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG