हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

एक काल्पनिक अभिलाषा....

जीवन के उन क्षणों को , चाहूँगा बार बार ।
तुझको अपने दिल में , बुलाऊँगा बार बार ।
तेरे ओंठो की तपिश , जगाऊँगा बार बार ।
तुझसे मिलने के लिए , आऊँगा बार बार ।
जीवन के उन क्षणों को , चाहूँगा बार बार ।
तुझको अपनी यादों में , बसाऊँगा बार बार । 

फिर याद मुझको आयेगी , तेरे ओंठो की छुवन वो ।
संग याद मुझको आयेगी , तेरे ओंठो की वो लाली ।
जब बैठे थे हम दोनों , एक दूसरे के पास । 
फिर याद मुझको आयेगी , तेरे आहो की तपन वो । 
संग याद मुझको आयेगी , तेरे चहरे की उदासी ।
जब जा रहे थे हम दोनों , एक दूसरे से दूर ।

सोंच कर इन प्यारी , यादो को बार बार ।
मागूँगा तुझसे , मुलाकातों को बार बार ।
बस डरता हूँ कही तुम , मुझको ही ना भुला दो ।
पाकर कर नया साथी , मेंरी यादो को मिटा  दो ।

यदि ऐसा कभी तुमने , जान कर किया ।
ये सोंच लेना तुमने , मेरी जान ले लिया ।
ऐसा नहीं है कि मै , जीवित ना रहूँगा ।
लेकिन तेरी याद में , हर पल मै मरूँगा ।
आने वाली हर साँस में , बस तुझसे ये कहूँगा ।
क्यों तुमने मेरे दिल से , था खिलवाड़ ये किया ?
जब मुझको भुला देना ही , नीयत थी तेरी ।
क्यों मुझको यूँ दिल से , लगाया था बार बार ।

हाँ अगर तुमने मेरी , यादो को संजोया ।
जीता रहूँगा मै सदा , बस तुझको करके याद ।
यदि कभी ईश्वर ने , फिर से कही मिलाया ।
जी भर के तुझे देख , भर लूँगा दिल की आस ।
हाँ अगर चाहा तुमने , कभी भी मेरा साथ ।
पाओगे मुझको तुम सदा , अपने ही  आस पास ।
है मंजिले अलग , तो रस्ते भी अलग हैं ।
लेकिन कई मुकाम है , जहाँ रहेंगे आस पास ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

किसी ने कहा है :- वो ये कहते है , अब हमको भुला दीजिये ,                        .
हम ये कहते है , कोई और सजा दीजिये ।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

एक स्वप्न और हकीकत...

वो स्वपन ही था जो वर्षो पहले , खुली आँख से देखा था ।
जब वही हकीकत में बदला , तो नींद नहीं अब आती है ।
खाना पीना छूट  गया और , काम भी सारे भूल गया ।
यादो के मँझधार में अब , जीवन का किनारा भूल गया ।
अपना हाल बताऊ क्या , अब खुद को मेरा पता नहीं ।
ख्वाब हकीकत में बदला , या मेरी हकीकत ख्वाब हुयी ।

कुछ समझ नहीं अब पाता हूँ , तुम्ही बताओ क्या करू ।
अपना हाल सुनाऊ तुमको , या हाल तुम्हारा पता करू ।
शायद मुझसे ज्यादा अच्छा , तुमने जीना सीख लिया हो ।
जीवन के मझधार में नैया , तुमने खेना सीख लिया हो ।
मेरा क्या मै वैसा ही हूँ , जैसा तुमने छोड़ दिया ।
तेरी याद में मैंने अपने , जीवन को बेचैन किया ।

पहले मुझको खबर ना थी , क्या चीज दिल्लगी होती है ।
जब से मुझको खबर हुयी , खुद को भुलाकर आया हूँ ।
छोटी सी वो मेरी दिल्लगी , दिल को जलाने वाली है ।
आज नही तो कल निश्चयः ही , मुझे रुलाने वाली है ।
यादो के मझधार में मुझको , बहुत घुमाने वाली है ।
भावों की आती जाती लहरे , मुझे मिटाने वाली है ।


अपना हाल बताऊ क्या , अब मेरी हकीकत ख्वाब हुयी ।
ख्वाब हकीकत में बदला , या तीर दिलो के पार हुआ ।
फिर भी मुझसे कहते हो , मै ही तुमसे रूठ गया ।
देखो शायद तुम मे ही , मेरा सब कुछ छूट गया ।
कल तक राह दिखता था , हर भूले भटके राही को  ।
आज फंसी जब मेरी कश्ती , राह मै सारी भूल गया ।

कल तक देता था मै सबको , जीवन की परिभाषाये ।
आज पड़ी जब मुझे जरुरत , भूल गया निज भाषाए ।
कल तक कितने लोगो को , मैं पार उतारा करता था ।
जब आज डूबता हूँ खुद , किसे पार लगाऊ तुम्ही कहो ।
अपना हाल सुनाऊ क्या , मैं दिल को जलाकर आया हूँ ।
तेरा तुझको क्या लौटाऊ , सब अपना गँवाकर आया हूँ ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

बस कर्म है अधिकार तुम्हारा...

बस कर्म है अधिकार तुम्हारा ,  पीछे ना हटो कर्त्तव्य से ।
होकर अधीर ना रुक जाना, निष्फल होते किसी कर्म से ।
ज्यों बूँद बूँद से सागर बनता , संचित होते कर्म सभी ।
यदि आज नहीं निश्चय कल ,  पाओगे तुम फल सभी ।
सतत नदी की धारा से ,  चट्टाने टूट बिखर जाती ।
संचित हुए पुरषार्थ से , कठिन घड़ी  भी कट जाती ।
कर्तव्य करो न व्यर्थ डरो , कभी कर्म नहीं खाली जाता ।
अच्छा हो या बुरा सभी , हर कर्म का फल मानव पाता ।

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शनिवार, 20 अप्रैल 2013

समग्रता....

खोल दो तुम द्वार सारे ,जीवन के अभी जो बंद हैं ।
राह दो तुम पवन को , साँसे अभी कुछ तंग है ।

उठने दो तुम ज्वार को , भावना के सागर में ।
तोड़ दो बंधन सभी , मन ना रहे एक गागर में ।
संसार क्या सन्यास क्या , दोनों कहाँ विपरीत है ।
अंतरतम को बदल लो , बस संसार ही सन्यास है । 

दुःख है अगर सुख भी होगा , सुख है साथ दुःख भी होगा ।
जब जन्म हुआ है जग में , तो मृत्यु भी निश्चय ही होगा ।
जब धर्म बनाया है तुमने , अधर्म भी जग में होगा ही ।
जब पुण्य बनाया है तुमने , पाप भी निश्चित होगा ही ।
बेहतर है जो जैसा है , उसको ही पूरा स्वीकार करें ।
गोता लगाकर गहरा , बस मोती का व्यापार करे । 

तुमने जब से जाना सुन्दरता , तय हो गयी तभी कुरूपता ।
जब तुमने माना नैतिकता , तय हो गयी तभी अनैतिकता ।
सत्य का मोल बताया जब , असत्य साथ ही आया तब ।
कर्मकांड जब शुरू किया , पाखण्ड भी साथ ही आया तब ।
हर सिक्के के दो पहलू हैं , किसी एक को चुनना मुश्किल है ।
बिना स्वीकार किये समग्रता , जीवन में खुशिया मुश्किल है ।

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रविवार, 14 अप्रैल 2013

चलते पाँव थके...

अब चलते चलते पाँव थके , तलुओ में पड़  गए छाले है ।
हम इतनी दूर निकल आये , अब नहीं पास घर वाले है ।
सोंचा था यूँ चलते चलते , पहचान स्वयं को जायेंगे ।
चाह रहा क्या मन बौरा , यह जान स्वयं हम जायेंगे ।
पर व्यर्थ हुआ आयोजन सब , मन अब भी लगता अंजाना है ।
यह जन्म गँवाकर भी देखो , ना स्वयं को अब तक पहचाना है।

हाँ ठीक कहा था तुमने 'अनंत' ....

सागर में ऊपर ऊपर , कब मोती किसी ने है पाया ।
शीश गँवाए भला कहाँ , ईश्वर में है कोई समाया ।
मन का क्या ? मन बौरा , कुछ दिल की भी तुम सुन लो ।
मत अपनी ही तुम करो सदा , कुछ औरो की भी सुन लो ।
आ लौट चले हम फिर वापस , घर अपने ओ परदेशी ।
कब तक यूँ ही भटकोगे , अब तो बन जाओ स्वदेशी ।

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कुछ समझ आता नहीं...

क्या करे क्या ना करे...
कुछ समझ आता नहीं...
नींद भी आती नहीं ,
चैन भी आता नहीं ।

सोंचता था सब निबटाकर , चैन से मै सो सकूँगा ।
जो था होना हो चुका , अब चैन से मै जी सकूँगा ।
पर वही लफड़ा पुराना , फिर वही गूँजे तराना ।
ना नियम ना कायदे , बस वही रोना और गाना ।

क्या करे क्या ना करे...
कुछ समझ आता नहीं...
कब कहाँ करना है क्या , 
कुछ भी पता चल पाता नहीं ।

बीत रहे दिन रात भले , पर नहीं लगता कुछ बदला ।
दिन महीने साल बीते , पर नहीं हालात कुछ बदला ।
दर चुके कितनी ही दाल , पर नहीं गलती है दाल ।
अब तो लगने ये लगा , जैसे हो मकड़ी का जाल ।

क्या करे क्या ना करे...
कुछ समझ आता नहीं...
सांप छछुंदर की है स्थित ,
कुछ भी दिल को भाता नही ।


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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

मन मेरा खाली-खाली है...

एक जाम तो पीने दो मुझको , मन मेरा खाली-खाली है ।
बेगानों सा लगता ये जग , यह रोज मनाता दिवाली है ।
मेरी समाधि मिटाकर के , वो चाह रहे हैं भवन बनाना ।
तुम उन्हें बता दो जाकर के , है शेष मुझे जग से जाना ।
पैमानों से क्या नाप रहे , बस जी भरकर मुझे पीने दो ।
मत रोंको टोंको मुझको , मुझे आज हकीकत कहने दो ।

जो नोंच रहे बेदर्दी से , अभी मेरे मण्डप के फूलो को ।
तुम उन्हें बता दो जाकर , मेरी डोली उठनी बाकी है ।
मेरे जाते ही मेरा सब कुछ , उनका ही होने वाला है ।
मयखाना देख मै ठहर गया , मुझको आगे जाना है ।
अपनी ही बगिया से क्यों , नफ़रत करता माली है ।
एक जाम पिला दो मुझको, मन मेरा खाली-खाली है ।


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रविवार, 7 अप्रैल 2013

भूँख है एक आइना ..

इन्सान की जिंदगी का ,भूँख  है एक आइना  ।
भूँख  चाहे पेट  की , या कहो उसे जिस्म की ।

भूँख  हो धन दौलत की , या फिर दर्शन की ।
भूँख  हो चाहे युद्ध की , या भूँख हो शक्ति की ।

भूँख बदल देती यहाँ , इन्सान की सोंच को ।
भूँख बना देती यहाँ , हैवान इंसानियत को ।

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गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

सन्नाटा...

रात  का सन्नाटा ख़ामोशी से , जब चारो तरफ पसरता है ।
बस्तियों को सुनसान कर , वो जंगलो को आबाद  है ।
भेड़ बकरियों की खोज में , भेड़ियों  का दिल मचलता है ।
उनके पीछे पीछे ही कहीं , गीधड़ो  का झुण्ड भी चलता है ।
पेट भले ही भर जाये , मन नहीं कभी भी भरता है ।
इन्सान के अन्दर छुपा , शैतान कभी नही मरता है । 
रात के सन्नाटे का , यह फायदा भी होता है ।
सफेद्पोसो के सब , करतूतों को छुपा लेता है ।
जुल्म और बेईमानी की , रंगत को बढ़ा देता है ।
कमजोर और कायरो को , बहादुर मर्द बना देता है ।
बेबस लाचार शिकारों को , दुल्हन सा सजा देता है ।
मन में छुपी कुंठाओ को , भरपूर ये मजा देता है । 
रात के सन्नाटे का , अपना ही नशा होता है ।
भीड़ के सूरमाओ की , रोंगटों को कंपा देता है ।
अपनी ही परछाहियों से , बहुतो को डरा देता है ।
भेड़ियों और गीधडों के , झुण्ड ये बना देता है ।
बदला  लेने वालो को , मौका ये दिला देता है ।
जुल्म करने वालों के , हस्तियों को मिटा  देता है ।

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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