हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 31 मार्च 2013

एक पाती..

सोंच रहा हूँ लिख डालूं , प्रियवर को अपने एक पाती ।
अपने मन का हाल लिखू , कह डालू दिल की सब बात ।
बहुत दिनों से मिले नहीं , न लिखी प्रेम की कोई पाती ।
कैसे बीते है ये दिन और , कैसे होगी आगे मुलाकात ।

वो भी क्या दिन थे जब , हम घंटो बाते करते थे ।
बिना बात की बात पर , हम अक्सर रूठा करते थे ।
फिर घंटो एक दूजे की , हम मान-मनोवल करते थे ।
रोज सबेरे एक दूजे से , हम सपनों की बाते करते थे ।

फिर ये कैसे दिन आये जब , दूर दूर हम रहते है ।
एक दूजे की यादो को क्यों , भुला कर यो जीते है ।
चलो नहीं लिखी जो तुमने , मुझको पाती मेरे यार ।
मै ही लिख डालूं अब अपने , दिल की बातो का सार ।

होली की शुभ कामनाओ के साथ.....

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG


शुक्रवार, 22 मार्च 2013

मायाजाल..

जीवन को समझाना चाहो तो , बूझो पहेली जीवन की ।
फिर मौत भले आ जाए मगर , डोर ना टूटे जीवन की ।
वो कौन यहाँ जिसने आकर , नीव रखा था इस जग का ।
सुनसान वीरानी धरती पर , अंकुर फोड़ा था जीवन का ।
कहाँ से लाया वो तारे , किससे उसने गगन बनाया ।
कैसे बिना सहारे के , ये धरती सूरज चाँद टिकाया ।

कहाँ ओर है इस जग का , और कहाँ छोर होगा इसका ।
ये सारी दुनिया कैसे बनी , कोई राज बताएगा इसका ।
कहाँ से आते हैं हम सब , फिर कहाँ अंत में जाते सब ।
जीवन मरण के चक्रव्यूह से , निकल नहीं क्यों पाते हम ।
जिसने सारे जग को बनाया , किसने उसको ईश्वर बनाया ।
किसने कैसे और किस कारण , ये सारा मायाजाल रचाया ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

रविवार, 3 मार्च 2013

अनकही....

कहने को कोई बात नहीं , फिर भी तुमसे कुछ कहना है ।
तुम सुनो या कर लो कान बंद , कुछ बात तुम्ही से करना है ।
यूँ पहले भी मैंने तुमसे शायद , कहे कई अफ़साने है ।
पर आज तो तुमसे कहना है , वो बिलकुल नए फ़साने है ।

देखो कितना समय है बीता , हम दोनों को चुप-चुप रहते ।
मन के भावों को मन में रखकर , मूक इशारो में बाते करते ।
कुछ लोक लाज की बाते थी , कुछ हम दोनों सकुचाते थे ।
कुछ बात जुबां तक आकर भी , हम कहे बिना रह जाते थे ।

है याद मुझे अब भी प्रियतम , वो मधुर मिलन की सारी बाते ।
बोल रहा था मै अविरल , अविचल हो तुम मुझे सुनती थी ।
शब्द ख़त्म हो जाने पर भी , नयनो में बाते होती रही ।
बिना कहे एक शब्द भी ,  तुम दिल की बाते कहती रही ।

तो आवो मिलकर हम दोनों , फिर से  रचे एक नयी कहानी ।
अब तक के सारे सुख-दुःख , फिर से कहे हम अपनी जुबानी ।
लोक लाज की बाते छोड़ , और भुला कर जग के बंधन को ।
आवो कह दे अपनी बाते सब , शब्द दे दिल के स्पंदन को ।


        
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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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