चाह रहा हूँ जो कहना , क्यों वो शब्द नहीं मै पाता हूँ ।निज भावों को बिना व्यक्त किये , अतृप सदा रह जाता हूँ ।क्या करूँ कहूँ मै कैसे वो , जो दिल में दबा रह जाता है ।यूँ ही उम्र बीतती जाती है , मन उसे समझ नहीं पाता है ।चलते चलते देर हो गयी , अब वापस जाया नहीं जाता है ।क्या सोंचेगे दुनियावाले , ये सोंच के भी मन भरमाता है ।बुद्धि नहीं देती है साथ , वह दिल को समझे कहाँ बिसात ।अंतरतम कर सके प्रगट , कोरे शब्दों में है नहीं बिसात ।प्रतिपल सदा सरोवर ही , बनकर रहने का है अभिशाप ।नदी बने बिना घुट-घुट कर , मर जाने का शायद है श्राप ।रुंधे कंठ बेकल नयनो में , है भटक रही अश्रु की धारा ।दोष किसी को मै दूँ कैसे , शायद अवरोध भी मुझको प्यारा ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG