चाहतो का एक पुल था , जो मिलाता था हमें ।
सब व्यस्तताओ के बाद भी , वो जोड़ता था हमें ।
यादो में एक दूसरे के , सदा बने रहते थे हम ।
दूर भले रहे मगर , पास बने रहते थे हम ।
फिर वक्त ने बदली जो करवट ,दूरियाँ बड़ने लगी ।
ना चाहते हुए भी देखो , नजदीकिया घटने लगी ।
चाहतो का पुल शायद , जर्जर है होने लगा ।
आपसी सौहाद्र भी , शायद कहीं घटने लगा ।
कमियां एक दूसरे की, क्यों हमें दिखने लगी ।
प्यार भरी बाते भी , दिल में कहीं चुभने लगीं ।
एक दूसरे की जरुरत , क्या ख़त्म होने लगी ।
या मनोभावों पर हमारे , धूल है ज़मने लगी ।
सोंचने की है जरूरत , बदलाव ये क्या हो रहा ।
रिश्तो की डोर में ये , उलझाव है क्यों हो रहा ।
बाते है वो कौन सी , जो बदलाव ये ला रहीं ।
ना चाहते हुए दिल में , क्यों दूरियां बढ़ा रहीं ।
गर समझ पायें इसे , टूटने से बच जाए पुल ।
रिश्तो की प्यारी डगर , जोड़े रह जाये ये पुल ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG