हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

सोंचने की है जरूरत..

चाहतो का एक पुल था , जो मिलाता था हमें ।
सब व्यस्तताओ के बाद भी , वो जोड़ता था हमें ।
यादो में एक दूसरे के , सदा बने रहते थे हम ।
दूर भले रहे मगर , पास बने रहते थे हम ।
फिर वक्त ने बदली जो करवट ,दूरियाँ बड़ने लगी ।
ना चाहते हुए भी देखो , नजदीकिया घटने लगी ।

चाहतो का पुल शायद , जर्जर है होने लगा ।
आपसी सौहाद्र भी , शायद कहीं घटने लगा ।
कमियां एक दूसरे की, क्यों हमें दिखने लगी ।
प्यार भरी बाते भी , दिल में कहीं चुभने लगीं ।
एक दूसरे की जरुरत , क्या ख़त्म होने लगी ।
या मनोभावों पर हमारे , धूल है ज़मने लगी ।

सोंचने की है जरूरत , बदलाव ये क्या हो रहा ।
रिश्तो की डोर में ये , उलझाव है क्यों हो रहा ।
बाते है वो कौन सी , जो बदलाव ये ला रहीं ।
ना चाहते हुए दिल में , क्यों दूरियां बढ़ा रहीं ।
गर समझ पायें इसे , टूटने से बच जाए पुल ।
रिश्तो की प्यारी डगर , जोड़े रह जाये ये पुल ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

5 टिप्‍पणियां:

govind pandey ने कहा…

Badhiya likhe hain..magar wo rista ki kya jo dooriyan badhne se kam ho jaaye. Rista to dilon ka aisa bandhan hai jo door rahkar bhi paas hota hai

Vivek Mishrs ने कहा…

kagaji bato aur hakikat me antar hota hi bhai...govind
sath hi dil aur dimag se diye gaye jabab me bhi...ha.ha.haaaa

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत सुंदर ।

कहीं दूर बहुत दूर ले जाइये उन्हें
फिर से वो यकीं दिलाइये उन्हें
कि आपका प्यार उनका बस उन्ही का है
फिर पुल पर से दौडकर आता पाइये उन्हें ।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

परिवर्तन प्रकृति का नियम है. रिश्तों में भी परिवर्तन होता है. अच्छा लगा. बधाई.
http://kpk-vichar.blogspot.in kabhi nazar dalen.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया.....
अच्छी रचना.

सादर
अनु

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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