ऐसा क्यों होता है अक्सर , जग सोता मै जागा करता ।
नींद से बोझिल आँखों में , तेरा प्रतिबिम्ब सजाया करता ।
तुम तो मुझको भुला चुके , यादो को सब मिटा चुके ।
मेरे दिए सभी उपहार , वापस करके जा भी चुके ।
पर हाल बता दो पत्रों का , जो मैंने तुमको भेजे थे ।
अपने दिल के अरमानो को , शब्दों के मध्य समेटे थे ।
नींद से बोझिल आँखों में , तेरा प्रतिबिम्ब सजाया करता ।
तुम तो मुझको भुला चुके , यादो को सब मिटा चुके ।
मेरे दिए सभी उपहार , वापस करके जा भी चुके ।
पर हाल बता दो पत्रों का , जो मैंने तुमको भेजे थे ।
अपने दिल के अरमानो को , शब्दों के मध्य समेटे थे ।
हर एक शब्द जो उसमे था , तुमपर अधिकार जताता था ।
मेरे व्याकुल मन को वो , थोडा सम्बल पहुँचाता था ।
तेरे बिना अकेले में , तेरा एहसास दिलाता था ।
तेरी बाँहों का झूला बन , सपनों में मुझे झुलाता था ।
तेरे कदमो को जबरन , वो मेरी तरफ बदता था ।
मेरी छाया प्रतिपल तेरे , चारो तरफ बनता था ।
तुम कहती थी पत्र मेरे , दिल को व्याकुल कर जाते है ।
तेरे तन-मन दोनों में , एक प्यास नयी जगाते है ।
लौटा दो मुझको पत्र मेरे , जो मैंने तुमको भेजे है ।
संबंधो का अंतिम बंधन , जो हम दोनों को लपेटे है ।
शायद मै भी भुला सकूँ , समय जो साथ गुजारे है ।
सहेज सकूँ उन टुकड़ो को , जो दिल के मेरे बिखरे है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG