हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 25 मार्च 2012

ऐसा क्यों होता है..?

ऐसा क्यों होता है अक्सर , जग सोता मै जागा करता  ।
नींद से बोझिल आँखों में , तेरा प्रतिबिम्ब सजाया करता ।
तुम तो मुझको भुला चुके , यादो को सब मिटा चुके ।
मेरे दिए सभी उपहार , वापस करके जा भी चुके ।
पर हाल बता दो पत्रों का , जो मैंने तुमको भेजे थे ।
अपने दिल के अरमानो को , शब्दों के मध्य समेटे थे ।

हर एक शब्द जो उसमे था , तुमपर अधिकार जताता था ।
मेरे व्याकुल मन को वो , थोडा सम्बल पहुँचाता था ।
तेरे बिना अकेले में , तेरा एहसास दिलाता था ।
तेरी बाँहों का झूला बन , सपनों में मुझे झुलाता था ।
तेरे कदमो को जबरन , वो मेरी तरफ बदता था ।
मेरी छाया प्रतिपल तेरे , चारो तरफ बनता था ।

तुम कहती थी पत्र मेरे , दिल को व्याकुल कर जाते है ।
तेरे तन-मन दोनों में , एक प्यास नयी जगाते है ।
लौटा दो मुझको पत्र मेरे , जो मैंने तुमको भेजे है ।
संबंधो का अंतिम बंधन , जो हम दोनों को लपेटे है ।
शायद मै भी भुला सकूँ  ,  समय जो साथ गुजारे है ।
सहेज सकूँ  उन टुकड़ो को , जो दिल के मेरे बिखरे है ।


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रविवार, 11 मार्च 2012

अभिनय सम्राट..

कुछ लोग है जीते मंचो पर , तरह तरह के भावो को ।
तरह तरह के चरित्र निभाते , जीवंत सभी को कर जाते ।

निश्चित ही उनके अभिनय में , रचा बसा होता है जीवन ।
तभी श्रेष्टतम कहलाकर वो , सम्मान सभी से बरबस पाते ।
उनके निभाए चरित्र सभी के , अंतरमन में है बस जाते ।
उनके कहे हुए शब्दों से , कुछ नए मानदंड बन जाते ।

श्रेष्ट है उनका अभिनयपन , श्रेष्ट है उनकी कला साधना ।
लेकिन कहा नहीं जा सकता , उनको अभिनय सम्राट यहां ।
वो पद ऊँचा है और उसके , अभिनय मापदंड भी ऊँचे है ।
फिर भी कुछ लोग यहाँ पर , उसके आस पास ही जीते है ।
ये लोग निरंतर करते है , अपने जीवन में अभिनय ।
तरह तरह के लोगो से , रंग रूप बदल कर मिलते है ।

पल पल में है बदला करते , इनके मन के भाव सभी ।
इनके अपने अरमानो के , आगे व्यर्थ हैं लोग सभी ।
मूर्ख समझते है ये जग को , अपने अभिनय कला के आगे ।
तरह तरह के चरित्र निभाते , ढोंग निरंतर करते जाते ।

सच और झूंठ का घालमेल कर , अपने को ये श्रेष्ट कहाते ।
निश्चित ही ये जन्म से ही , अभिनय सम्राट है बनकर आते ।


होली के रंगों के साथ...

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बुधवार, 7 मार्च 2012

जय हो यू.पी. के भैया लोगो की....

जय हो यू.पी. के भैया लोगो की....
 (१)

चल हथिया , चल हथिया ,
इस्तीफा देने राज्यपाल के पास ।
जनता ने है हवा भरी ,
अबसे चलेगा सायकिल  राज ।



जनता ने है चोट किया ,
हाथी हो गया पस्त निराश ।

कुचल गया है हाथ का पंजा ,
मुरझाया कमल का फूल है आज ।


टायर टूयूब नए डलवाकर ,
चली है फिर से साइकिल आज ।
अब देखे क्या किस्मत प्रदेश की ,
होगा सुशाशन या फिर आएगा गुंडा राज ?

(२)

ब्रेवो राहुल,
हार जीत होती रहती है ,
नर हो न निराश करो मन को.....।

वेलडन अखिलेश,
अपने सपनों को साकार किया ,

पिता को सिंहासन उपहार दिया ।

ना होना निराश उमा भारती..
अभी जन्मभूमि का  काज है बाकी ।


अब रेस्ट करो थोडा मायावती..
मतवाला हो गया तेरा हाथी ।


होली की आप सभी को सपरिवार हार्दिक शुभ कामनाये.....

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रविवार, 4 मार्च 2012

घुमा फिराकर..


पहले लोगो को अक्सर गुनगुनाते सुनता था....
"तू जो नहीं तो कुछ भी नहीं , ये माना महफिल जवाँ है हँसी है....।"
और आजकल सुनने को मिलता है....
"आप नहीं कोई और सही...कोई और नहीं कोई और सही....।"

अफसोस.... पूरब और पश्चिम का अंतर समाप्त होता जा रहा है....!

थोडा घुमा फिराकर कहूँ तो...
"मेरा जीवन कोरा कागज...." से 
"जिंदगी प्यार का गीत है...." महसूस करके 
"ओंठो से छू लो तुम..." की तमन्ना में 
"तुझको देखा तो ये जाना सनम..." के बाद 

"ये मेरा दिल प्यार का दीवाना..." और 
"आ जाने जाना..." के चक्कर में 
"काँटा लगा, उई रब्बा...." महसूस करके 
"दिल में है मेरे दर्दे डिस्को..." गाते हुए
"लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए..." से 
"बीड़ी जलईले जिगर से पिया..." के हालात से गुजरते हुए
"बाबू जी जरा धीरे चलो..." कहने के वावजूद जब 

"शीला की जवानी..." ने 
"मै आयी हूँ यूपी. बिहार लूटने..." के हालात बनाये और उसके आगे जब
"मुन्नी बदनाम हुयी..." तब तक भारत इतना बदल गया कि पुरानी प्रेमिका जिसके लिए..
"महबूबा ओ महबूबा..." की रट लगायी जाती थी वो नादान जहाँ एक तरफ...
"पिया तू अब तो आ जा..." की धुन पर नाहक ही टेसुए बहते हुए 
"तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे..." की रट लगाये जा रही है वही दूसरी तरफ 
"चिकनी चमेली..." खुलेआम शराब की बोतल लटकाकर जिल्लेइलाही की परवाह किये बिना सलीम के साथ
"अनारकली डिस्को चली..." बताने लगी है...।

अब क्या कहूँ , क्या ना कहूँ.....दिमाग कहने से रोंकता है पर दिल कहने से बाज नहीं आता....!
अपने तो हालात ऐसे है कि......"काजी बेचैन क्यों..? शहर के अंदेशे में...।"

वैसे 
मै कह कर भी कुछ कहता नहीं,
फिर बिना कहे सब कह जाता हूँ ।
जो अपने है वो अपने है ही ,
गलत दिखे गैरो को भी लतियाता हूँ ।
जब तक बंद किये हूँ नेत्र,
बुद्धं शरणम मुझको समझो ,
भृकुटी हुयी तिरछी ज्यो ही ,
परशुराम का शिष्य ही समझो ।

तो अनुरोध है श्रीमान.....
शब्दों पर ना जाये मेरे,
बस भावो पर ही ध्यान दे..
अगर कही कोई भूल दिखे ,
तत्काल ही उसे सुधार दे । 

तो वापस चलता हूँ अपने..."अनंत अपार असीम आकाश" में.. 
क्योंकि अब तो मेरी लंका भी मिटटी में मिल गयी है.. जहाँ 
"त्रेता युग" में "दस शीश दशानन रावण हूँ, मै लंकापति लंकेश्वर हूँ" की मेरी गर्जना सुनकर...  
देव,दानव,यक्ष,किन्नर,गन्धर्वो समेत मानवों कि पाप-आत्माए काँप उठती थी।

और इतना तो जान ही गया हूँ कि कलयुग में..."दीवारों से सर टकराने से अपना ही सर फूटता है.....।"
(मूलत: ये पोस्ट फेसबुक पर किसी खास को लक्ष्य करके लिखा गया था)
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गुरुवार, 1 मार्च 2012

प्यार,छल और कपट..

क्यों चाह रहे उस मंजिल को , जहाँ रूह नहीं बच पानी है

क्यों खोजो रहे वह प्यार पुन: , जो छल और कपट का सानी है । 

झूंठे सच्चे वादों में क्यों ,
फिर मन तेरा ललचाता है ?
वो है एक मृग मरीचका ,
जो मन तेरा भटकता है..!


यदि मिल ही जाये फिर से , छल और कपट में लिपटा प्यार  
क्या खुश रह पावोगे जीवन भर , पूँछो अपने दिल से एक बार  

मेरा तो कर्त्तव्य यही .....,
मै समझाऊंगा बारम्बार 
जब जब व्याकुल होगे तुम ,
मै तुम्हे संभालूँगा हर बार  

सच और झूँठ के अंतर को , मै तुम्हे बताऊंगा हर बार 
वचन दिया है मैने , सत्य का साथ निभाऊंगा हर बार 
फिर चाहे मुझको अपनो का ,
अर्जुन सा करना पड़े विरोध 
दूर करूँगा हर बाधा को ,
जो बनना चाहेगा अवरोध 

बस मुझको तुम दो इतना वचन , नहीं जीवन में निराशा लाओगे
तोडा है जिसने दिल तेरा , भुला उसे तुम जीवन में आगे जाओगे
हाँ ये ईश्वर की सदइच्छा ही है ,
तुम्हे नर्क के द्वार से वापस लाया 
देकर बस थोडा सा कष्ट तुम्हे ,
ज्यादा कष्टों से तुम्हे बचाया 

समझे प्यारे....... यही सत्य है जीवन का..!
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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