हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

देख मेरा दीवानापन..

लो देख तेरा दीवानापन , मै प्यार तुम्ही से कर बैठा ।
किया नहीं था अब तक , इकरार तुम्ही से कर बैठा ।
बहुत संभाला दिल को पर , मै दिल तुमको ही दे बैठा ।
तुझे बसाकर दिल में अपने , इजहार तुम्ही से कर बैठा ।
अपने हाथो मैंने गंवाई , स्वयं अपने दिल की चाभी यूँ ।
बस देख तेरा दीवानापन , मै बन गया एक परवाना यूँ ।

अब देख मेरा दीवानापन , मै मस्तानो सा फिरता हूँ ।
भूल कर सारी दुनिया को , मै तुझे खोजता रहता हूँ ।
एक तेरे नाम का एकतारा , मै सदा बजाया करता हूँ ।
तेरे रुपहले चहरे से ही , मै ख्वाब सजाया करता हूँ ।
तेरे प्रेम की मदिरा से , मै स्वयं को छकाया करता हूँ ।
अपना ये दीवानापन भी , मै जग से छुपाया करता हूँ ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

govind pandey ने कहा…

ये कैसा दीवानापन है जनाब, प्यार करो मगर जग बिसरा कर नहीं....इसपे एक गाने की पंक्ति याद आ गई सो लिख रहा हूँ "दिल न चाहे भी तो लाख संसार में, चलना पड़ता है सबकी खुशी के लीये...प्यार से भी जरूरी कई काम हैं, प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लीये...." अंतिम पंक्ति पे गौर फरमाइयेगा," छोड़ दें सारी दुनिया किसी के लीये ये मुनासिब नहीं आदमी के लीये ...प्यार से भी जरूरी....".

Vivek Mishrs ने कहा…

अच्छा जी... मुझे तो पता ही नहीं था ये सब...
वैसे सुना ही न आपने..
जा के पांव न फटी बेवाई,
वो क्या जाने पीर परायी.
तो दुनिया ने कब राँझा,मजनू,माहिवाल को समझा है..

और ये भी सुना ही होगा आपने..
प्रेम गली अति संकरी..ता में दुए न समाये.

गोविन्द जी प्रेम कीजिये फिर कहिये कैसे दुनिया रहती याद..
और आपका तो नाम ही प्रेम का मार्ग है.

हा,हा.ह़ा

Vishal Mishra ने कहा…

Valentine day ke uplakshay men bahut achchee kavita likhi hai bhai. Kavya Khetra kee bahut hee chhupi huvee pratibha hain aap.

Darshan se bhari abhilasha bhee bejod hai. Aisa kuchh sher hai

Aaj tak yah na jaan saka koi
Aadami aata hai kahan se aur jata hai kahan?
na hi yah pata hai to kisliye aaya hai.. kis liye (Abhilashayen??) aaya yah bhee aisa hee sawal hai.

Mujhe to lagata hai ki lakhon page ki kitabon ka 1 harf (shabd) hai insan ka jeevan. Saagar ki 1 bund bhee naheen aur ahankar himalaya jaisa. Aagarah karungaa is par kuchh aur bhee likhen.

(phulon ke paas aapake photo bhee sundar hain. Aajkal main bhee inheen phulon, nature ke kareeb hoon. gulab ke guchhon ke paas jane ka mauka naheen chhodata.) Advance men Mahashivaratri ki shubhakamnayen. Hope to talk u ASAP.

Aapaka Vishal

Vivek Mishrs ने कहा…

धन्यवाद विशाल जी , आपने ब्लाग पर आकर अपना अमुल्य समय दिया आपका आभार………

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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