कहते हो तुम मुझको अपना , एहसास कराते सदा यही ।
फिर भी राज छुपाते मुझसे , संशय नहीं मिटते दिल से ।
हर शब्द के दोहरे अर्थ खोजते , दोहरा चरित्र बनाये रखते ।
अपने जैसी ही मेरी भी , दिल में छवि बनाये रखते ।
तुम भले कहो इसे अपनापन, पर ये कैसा अपनापन है ?
इसे अपनापन कहे अगर तो , कहते किसे बेगानापन है ?
जब गले लगा न सके मिलकर , न दिल की बात कहें खुलकर ।जब टीस छुपाये हम दिल की , न बात बताये अपने मन की ।न खुल कर हम आरोप लगायें , न प्रश्नचिन्ह हम कोई बनाये ।संबंधो की मर्यादा में रहकर , तीखे शब्दों के तीर चलाये ।समझ सके न अपने से , क्यों विचलित है अपनो का दिल ।फिर भी हम एहसास कराये , अपनो को अपनापन प्रतिदिन ।
ये बात सही है जीवन में , कुछ अंश चाहिए सबको निजता ।लेकिन निज को निजता का , एहसास करना कहाँ उचित ?मै कब कहता अपनेपन की , बस केवल मुझे जरुरत है ।तुम झांको जरा अपने दिल में , क्या वहां नहीं मेरी सूरत है ?निश्चित ही कही कमी है कोई , जो तुमको बदल न पाया हूँ ।तेरा सब कुछ है बेगानों जैसा , फिर भी तुझको अपनाया हूँ ।
तेरे अपनेपन के आवरण को , मै अब तक भेद ना पाया हूँ ।
तुम भले कहो इसे अपनापन , पर मै तुम्हे नहीं पा पाया हूँ ।