हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

बंधन

प्यार, सम्बन्ध और रिश्ते ,
जन्म , मरण और मोक्ष ।
मान , सम्मान और अपमान ,
धन,सम्पत्ति,वैभव और पराभव  ।
चाहत , नफ़रत और उपेक्षा , 
अनुग्रह,आभार और अनादर ।
न जाने कितने मकड़जाल , 
फैले हैं हमारे चारो तरफ ।

कभी वो दिखते हमें प्रत्यक्ष  , कभी वो रहते है अदृश्य ।
कभी हम पाते उन्हें समझ ,कभी वो होते अबूझ पहेली ।

यूँ  जब जब हम जीते है , जीवन अलग-अलग कई खंडो में ।
हम और उलझने लगते है , इन दृश्य-अदृश्य मकड़जाल में ।

फिर हम समझ नहीं पाते , है नहीं अलग खुशिया और दुःख ।
किसी जंजीर की कड़ियों सी , ये बंधी हुयी हैं असीम अनंत ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

शिखा कौशिक ने कहा…

विवेक जी सच लिखा है दुःख व् सुख एक ही सिक्के के दो पहलू है .बहुत sundar भावाभिव्यक्ति .आभार .

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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