हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 17 मई 2011

अनुगामी...

आसान नहीं अनुगामी बनाना ,
निज चोला बदलना पड़ता है ।

जीवन के जाने कितने ,
आयाम बदलना पड़ता है ।

फिर कंठ भले ही अपना हो ,
शब्द बदलना पड़ता है ।

भाषा चाहे जो बोलें ,
भाव बदलना पड़ता है ।

भुलाकर अपनी निज सत्ता ,
आचरण बदलना पड़ता है ।

हम बनते है अनुगामी जब ,
जीवन को बदलना पड़ता है ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आना अच्छा रहा।
यह चिड़िया तो बड़ी प्यारी है।

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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