हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

प्रेम कहानी...

बादल गरजे ,बिजुरी चमके , बरस रहा हो पानी ।
हाथ में हाथ पकड़ हम दोनों , भींगे उसमे रानी ।
कहो कैसी है प्रेम कहानी , सुनो ध्यान लगाकर रानी ।

निकल रहा हो चाँद गगन में , चमक रहे हो नन्हे तारे ।
आँखों में आँखे डाले हम तुम , बुनते हो सपने प्यारे ।
सुन रही हो प्यारी रानी , अब बढ़ने लगी कहानी ।

जब दिनकर आने वाले हों , पुष्प भी खिलने जाते हों ।
मधुर गीत हम दोनों ही , मिलकर कोरस में गाते हों ।
कुछ समझ रही हो रानी , है ये कैसी प्रेम कहानी ।

सावन की घटायें आने पर  , जब कोयल का हो मन डोला ।
हम दोनों खोकर एक दूजे में , झूले मस्ती में झूला ।
कहो कैसी लगी कहानी , क्या सोने लगी हो रानी । 
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

Anamikaghatak ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

कविता रावत ने कहा…

sundar pyar mein jeeti jaagti rachna...badiya prastuti

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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