एक जाम तो पीने दो मुझको , मन मेरा खाली-खाली है ।
बेगानों सा लगता ये जग , यह रोज मनाता दिवाली है ।
मेरी समाधि मिटाकर के , वो चाह रहे हैं भवन बनाना ।
तुम उन्हें बता दो जाकर के , है शेष मुझे जग से जाना ।
पैमानों से क्या नाप रहे , बस जी भरकर मुझे पीने दो ।
मत रोंको टोंको मुझको , मुझे आज हकीकत कहने दो ।
जो नोंच रहे बेदर्दी से , अभी मेरे मण्डप के फूलो को ।
तुम उन्हें बता दो जाकर , मेरी डोली उठनी बाकी है ।
मेरे जाते ही मेरा सब कुछ , उनका ही होने वाला है ।
मयखाना देख मै ठहर गया , मुझको आगे जाना है ।
अपनी ही बगिया से क्यों , नफ़रत करता माली है ।
एक जाम पिला दो मुझको, मन मेरा खाली-खाली है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
4 टिप्पणियां:
उम्दा प्रस्तुति !
LATEST POSTसपना और तुम
आज की ब्लॉग बुलेटिन दिल दा मामला है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत अच्छी और
गहन भाव लिए रचना....
बधाई!!
अनु
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
एक टिप्पणी भेजें