किसी ने क्या खूब कहा है ...
"मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ, वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं.. !"
खैर दाग भी आजकल अच्छे है... तो
चाहतो की जब हदों से ,
पार हम जाने लगे ।
नींद में भी आपका ,
जब नाम दोहराने लगे ।
यूँ देख कर मेरे हाल को ,
जब लोग कतराने लगे ।
छोड़ कर मुझको अकेला ,
अब आप भी जाने लगे ?
आपके एतबार पर ,
मैंने छोड़ दी पतवार भी ।
अब जब मजधार में आ गए ,
कैसे छोड़ दें हम प्यार भी ।
अब तो चाहे पार हों ,
या डूब जाएँ हम यहाँ ।
चाहतो की सब हदों को ,
हमें पार करना है यहाँ ।।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
7 टिप्पणियां:
नमस्कार जी
.........खूबसूरत तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ गए..
बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
behtreen rachna
बहुत ही प्यारी-सी कविता...
मन की बात सुंदरता से लिख दी है ...
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