जीवन की आधार शिलाये , अगर गढ़ी हो आदर्शो की ।
आँच नही आने पायेगी , सुख दुःख के आवर्तन की ।
कदम उठाओ कदम बढ़ावो , अपनों को अपने से जोड़ो ।
स्वप्नों के संसार का छोडकर , सच से अपना नाता जोड़ो ।
महल ताश के टिकते नही , कागज के फूल महकते नही ।
ईमान बेंचकर इस जग , सम्मान किसी को मिलता नही ।
सोंचो बिना नीव के कोई , मीनार खड़ी हो सकती है ।
कागज की कश्ती से कोई , नदी पार हो सकती है ।
बिना कर्म का संचय किये , कब किस्मत की गठरी बनती है ।
कागज के आदर्शो से , कब जीवन की गाड़ी चलती है ।
कर्म करो बस कर्म करो , आधार रहे आदर्शो का ।
आदर्शो के आधारशिला पर , महल बनाओ अपने श्रम का ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना है। धन्यवाद।
संदेशपरक अच्छी रचना ...
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