हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

आधारशिला

जीवन की आधार शिलाये , अगर गढ़ी हो आदर्शो की ।
आँच नही आने पायेगी , सुख दुःख के आवर्तन की ।
कदम उठाओ कदम बढ़ावो , अपनों को अपने से जोड़ो । 
स्वप्नों के संसार का छोडकर , सच से अपना नाता जोड़ो ।
महल ताश के टिकते नही , कागज के फूल महकते नही ।
ईमान बेंचकर इस जग , सम्मान किसी को मिलता नही ।

सोंचो बिना नीव के कोई , मीनार खड़ी हो सकती है ।
कागज की कश्ती से कोई , नदी पार हो सकती है ।
बिना कर्म का संचय किये , कब किस्मत की गठरी बनती है ।
कागज के आदर्शो से , कब जीवन की गाड़ी चलती है ।
कर्म करो बस कर्म करो , आधार रहे आदर्शो का ।
आदर्शो के आधारशिला पर , महल बनाओ अपने श्रम का ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है। धन्यवाद।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

संदेशपरक अच्छी रचना ...

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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