हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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सोमवार, 17 जून 2013

क्या लिखूँ ...

क्या लिखू क्या ना लिखूँ  , कुछ समझ पाता नहीं । 
भाव हैं मन में बहुत , पर  उन्हें समेट पाता नहीं ।
कुछ भाव हैं बस प्यार के , कुछ है तेरे अहंकार के ।
कुछ भाव तुझसे लगाव के, कुछ रिश्तो के बिखराव के ।
कुछ भाव हैं निर्द्वन्द से , कुछ उलझे है अंतर्द्वंद से  ।
कुछ मुस्कुराहट ला रहे , कुछ फिर दुखी कर जा रहे ।

क्या लिखूँ  क्या ना लिखूँ , चलो तुम ही बताओ मै क्या लिखूँ ।
वो बसंत ऋतु की बात लिखूँ, या ये पतझड़ का बिखराव लिखूँ ।
गैरों का बनना अपना लिखूँ  , या अपनो का बनना गैर लिखूँ  ।
है भूल-भुलैया भावों  की , कोई राह मिले तब तो मै लिखूँ ।
यहाँ अपना पराया कोई नहीं , फिर बात कहो मै किसकी लिखूँ ।
मकड़जाल  में उलझा  मन , चलो उलझन को सुलझाना लिखूँ ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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