ये दौर है एहसान फरामोश कठपुतलियों का ?
या बागी होने को बेताब कठपुतलियों का ?
कल तक जिनके दामन में , मैंने फूल बरसाए थे।
वो देखो आज बिछाते है , मेरी राहो में अब अंगारे।
कल तक मेरी नूर से जो , रोशन हो बने सितारे थे।
वो देखो आज बुझाते है , मेरी राहों के ही उँजियारे।
कल तक जिनकी राहें मै , समतल करता चलता था।
वो देखो आज बनाते है , अब मेरी राहों को ही पथरीले।
कल तक मेरी साँसों से , जो राहत की साँसे पाते थे।
वो देखो बोझिल करने को , तत्पर है मेरी साँसों को।
कल तक मेरी नीयति से जो , अपनी शाख चलाते थे।
वो देखो आज उठाने लगे , अब उंगली मेरे दामन पर।
कल तक पाला था जिनको , अपनी ही अस्तीनो में।
वो देखो आज चुभोने को , हैं करते जहरीले दांतो को।
क्या भूल गए वो मेरी क्षमता , या मद में आकर बौराये है ?
अपनी कठपुतली की डोरो को , शायद वो भाँफ ना पाये है ?
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
ऐसा ही होता है दुनिया में !
नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
बौरा ही गये हैं..
भांप
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