हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

जिंदगी के रंग

जिंदगी है एक पर , रंग उसमे है हजार ।
एक पल में है ख़ुशी , एक पल में दुःख हजार ।
      एक ही होता है दिल , जो भेष बदलता रहता है ।
      कभी दरियादिल बन जाता , कभी पत्थर का हो जाता है ।
देखने में इन्सान सब , एक से लगते यहाँ ।
पर न जाने रूप कितने , है छुपे उनमे यहाँ ।
      रात-दिन करते हैं पूजा , पर पत्थर कहते भगवान को ।
      भूल कर सब दोष अपने , आरोपित करते भाग्य को ।
उलझने सुलझाने की , दावे जो करते यहाँ ।
वो ही उसे उलझाकर , हैं मजा लेते यहाँ ।
      जो आज मिलते हैं गले , वो काट लेते कल गला ।
      लेकर सपथ सच की यहाँ , सच को ही देते जला ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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