आओ चलें हम दूर कहीं , सागर के किसी किनारे पर ।
लहरों की छुवन महसूस करें , अपनी फैली बाँहों पर ।
मिलने दें अपने मन की , लहरों को सागर से हम ।
भर ले अपने दिल को , सागर के ज्वारों से हम ।
शायद सागर का खारा जल , फिर आँखों में आंसू भर दे ।
बलखाती लहरे सागर की , पत्थर दिल को पोरस कर दें ।
फिर शायद महसूस कर सकें , अपने अकेलेपन को हम ।
सीख सके उससे शायद , कुछ थोड़ा संयम भी हम ।
शायद उसका विस्तार देख , दिल को बड़ा बना पायें ।
देख कर उसके तूफानों को , मन में जोश जगा पायें ।
अपनी खाली थाती में , कोई मोती उपजा पायें ।
भुलाकर अपने स्वार्थ सभी , निस्वार्थ भी थोड़ा हो पायें ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत अच्छी रचना , बहुत अच्छे विचार । जब तक हम सागर तक नहीं जाते अहसास ही नहीं होता है कि हम कुछ नहीं! बहुत कुछ सीखना है सागर से ! धन्यवाद
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