साईं ने जब कह दिया , जग है माटी मोल ।
माटी से सब तौल कर , चुकता कर दो मोल ।
माटी से जब तक नही , मिलता नश्वर शरीर ।
माटी के हित प्राण की , बाजी लगता बीर ।
माटी ने पैदा किया , माटी ने है पाला हमें ।
कर्ज चुका कर माटी का , माटी में मिल जाना हमें ।
माटी का रंग बदलता है , स्वभाव बदलता कभी नही ।
ममतामयी माता की तरह , आश्रय पाते उससे सभी ।
माटी अपना धर्म निभाकर , निर्लप्त रहती जाती है ।
जीवन का यह मूल मंत्र , हमको सदा सिखाती है ।
यहाँ माटी में माटी जैसा , बनकर साईं रहता है ।
इस जग को हर पल , माटी सा ही समझता है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सार्थक सूत्र दिये माटी के माध्यम से। धन्यवाद।
धन्यवाद कपिला जी
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