"वो बुझाये मै जलूँ , यह जुस्तजू दोनों में थी ।
इम्तहां उनका भी था , और इम्तहां मेरा भी था ।।"
आप सभी का पुन: स्वागत है..
मै नही कहता कि मैंने , किसी दर पर शीश झुकाया नहीं ।
पर हर दर पर फ़ौरन मुझको , शीश झुकाना भाया नहीं ।
यूँ वो भी कोई शीश है जो , हर दर पर झुक जाता हो ?
पर वो दर भी क्या दर है , जो शीश झुका ना पाता हो ?
अगर नहीं है मन में श्रधा , फिर शीश झुकाने का क्या मतलब ?
दिल में नही है चाह अगर , तो सीने से लगाने का क्या मतलब ?
मत कहना अभिमान इसे , ये तो है निर स्वाभिमान ही ।
शीश झुकाने का आडम्बर , कर सकता कोई बेईमान ही ।
हाँ कुछ दर ऐसे भी होते हैं , जिनको भाती है चाटुकारिता ।
सत्ता मद में होकर चूर , वो करते जाते हैं व्याभिचारिता ।
ऐसे दर जब मुझे झुकाना चाहेंगे , मै शीश उठाये रखूँगा ।
वो डर, भय लोभ दिखायेंगे , मै फिर भी सच ही बोलूँगा ।
विजय किसे मिल पाती है , वक्त ही तय कर पायेगा ।
स्वाभिमान और आडम्बर, जब आपस में टकराएगा ।
जब गरिमामय होगा दर , मै स्वयं से शीश झुकाऊंगा ।
वर्ना हर दर से मै वापस , बिना शीश झुकाए जाऊंगा ।
यह तो है एक इम्तहान , जिसे हम दोनों को देना है ।
यदि इम्तहान उनका है ये , तो इम्तहान मेरा भी है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
4 टिप्पणियां:
rachna me jaan hai
bahut achhi lagi......badhaai !
Shukriya albela ji..Hausala Afjai ke liye.
very good lines
शीश उठाए रखने के सामने शीश झुकाने का जज्बा.
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