क्यों पूँछते हो तुम हवाओ से मेरे आशियाने को ,
गर पूंछना ही है तो पूँछो आंधियो से मेरा पता ।
ये हवाए जो तुम्हे मिलती हैं अक्सर राहों में ,
वो गुजराती है मेरे घर के कई कोसो से दूर ।
तो जाकर पूँछो तुम किसी आँधी से मेरा पता ,
वो आंधिया ही है जो गुजराती है मेरे दरवाजे से ।
हाँ अगर तुम्हे चाहिए मेरे घर के अन्दर का निशा ,
तो बता पाएंगे तुमको केवल बवंडर ही सही पता ।
क्योंकि अक्सर राहों पर,
जब थक जाते है कई बवंडर ,
जब थक जाते है कई बवंडर ,
तब आकर सुस्ताते है वो,
अक्सर मेरे घर के अन्दर ।
अक्सर मेरे घर के अन्दर ।
और जानना चाहो जो तुम मेरे स्वाभाव के बारे में ,
उसको जाकर पूँछो तुम कुछ गिने चुने तूफानों से ।
वो तूफां ही है जिनको आगे बढ़कर गले लगाता हूँ ,
पास बिठाकर उनको अपने दिल का हाल सुनाता हूँ ।
बाकी तो बस यूँ ही मेरे घर तक आते जाते है ,
कुछ दरवाजे के अन्दर कुछ बाहर ही रह जाते हैं ।
अन्दर जो भी आता है वो मेरा होकर जाता है ,
बाकी तो बस बेगानों सा बाहर ही रह जाता है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG