क्यों होते बेचैन हो इतना , क्यों स्वयं को भरमाते हो ।
सतरंगी इस जीवन से , क्यों अपना चेहरा छिपाते हो ।
मैंने सोंचा था शायद , जीने की कला तुम सीख गए ।
मौसम के परिवर्तन का , कुछ आनंद उठाना सीख गए ।
पर तुम अब भी वैसे ही हो , जैसा मै तुमको छोड़ गया ।
अचरज भरी निगाहों से , मुझे देख रहे क्यों छोड़ गया ।
मैंने सोंचा था शायद , मेरे जाने से तुम संभल जाओगे ।
मुझपर लगाये आरोपों से , आगे तुम निकल जाओगे ।
तुम थे तब मेरे बंधन में , जो तुमको दुख पहुंचता था ।
निर्द्वंद जीवन का सुख , तब मन को तेरे ललचाता था ।
लेकिन तुम हो वहीं खड़े , जहाँ मै तुमको छोड़ गया था ।
देख तुम्हे होता है दुःख , क्यों मै तुमको छोड़ गया था ।
चलो लौट मै आया फिर , सच पूँछो गया कहाँ था दूर ।
तुम भले ना अपना समझो , तुम हो मेरे आँखों के नूर ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG