ज्ञान प्राप्त करने हेतु अच्छा गुरु नितांत आवश्यक है
परन्तु
गुरु के देने मात्र से ही शिष्य को ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता है ,
वरन
सजगता से शिष्य के प्रयत्न कर लेने से ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है।
यूँ तो
गुरु के पास रहकर बहुत बार मन में भ्रम पैदा हो जाता है कि हमें बहुत कुछ मिल रहा है ,
परन्तु
यदि हम पहले से ही भरे हुए पात्र अथवा बिना पेंदी के बर्तन के समान हैं तो गुरु की ज्ञान वर्षा भी व्यर्थ है।
वास्तव में
गुरु तो सहज भाव से ही अपने समस्त शिष्यों को अपना ज्ञान लुटाता रहता है ,
जो अयोग्य होते हैं वो चूक जाते है।
जो योग्य शिष्य होते हैं वो संगृहीत कर लेते हैं ,
और महान शिष्य, महान गुरुओ का नाम रोशन कर जाते है।
"कोहिनूर सा बनने के लिए जितना महत्वपूर्ण ये है कि हीरे के टुकड़े को परख कर बेहतरीन तरीके से तराशने वाला मिले उतना ही महत्वपूर्ण ये भी है कि उस हीरे के टुकड़े में भी तराशने योग्य संभावना और क्षमता होनी चाहिए अन्यथा कोई भी जौहरी कोयले के टुकड़े को हीरा नहीं बना सकता। "
परन्तु
गुरु के देने मात्र से ही शिष्य को ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता है ,
वरन
सजगता से शिष्य के प्रयत्न कर लेने से ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है।
यूँ तो
गुरु के पास रहकर बहुत बार मन में भ्रम पैदा हो जाता है कि हमें बहुत कुछ मिल रहा है ,
परन्तु
यदि हम पहले से ही भरे हुए पात्र अथवा बिना पेंदी के बर्तन के समान हैं तो गुरु की ज्ञान वर्षा भी व्यर्थ है।
वास्तव में
गुरु तो सहज भाव से ही अपने समस्त शिष्यों को अपना ज्ञान लुटाता रहता है ,
जो अयोग्य होते हैं वो चूक जाते है।
जो योग्य शिष्य होते हैं वो संगृहीत कर लेते हैं ,
और महान शिष्य, महान गुरुओ का नाम रोशन कर जाते है।
"कोहिनूर सा बनने के लिए जितना महत्वपूर्ण ये है कि हीरे के टुकड़े को परख कर बेहतरीन तरीके से तराशने वाला मिले उतना ही महत्वपूर्ण ये भी है कि उस हीरे के टुकड़े में भी तराशने योग्य संभावना और क्षमता होनी चाहिए अन्यथा कोई भी जौहरी कोयले के टुकड़े को हीरा नहीं बना सकता। "
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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