राख के ढेर को, ना हिकारत से देखो।
आग की लपटे थी, वो कुछ देर पहले।
आग जलती जहाँ, राख पैदा वो करती।
राख के ढेर में ही, छिपकर वो रहती।
कभी वो सुलगती, कभी वो धधकती।
कभी वो भयानक, लपटों में जलती।
अपनी तपिश में वो, है सबको जलाती।
चिनगारियो को वो, आँचल में छिपाती।
अपनी तपिश में वो, है सबको जलाती।
चिनगारियो को वो, आँचल में छिपाती।
जलाकर सभी कुछ, फिर वो सिमटती।
मिटाकर सभी कुछ, राख का ढेर बनती।
ये बताती हमें है,नश्वर सब जगत में।
ना इतराओ तुम,इस नश्वर जगत में।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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