सब उसका है , जग जिसका है ।
जीवन उसकी , मृत्यु भी उसकी ।
सुख भी उसका , दुःख भी उसका ।
धूप भी उसकी , छाँह भी उसकी ।
जल भी उसका , थल भी उसका ।
नगर भी उसका , गाँव भी उसका ।
मेरा क्या मै तो हूँ मुसाफिर , लेकर क्या मै आया था ?
मेरी सारी सुख सुविधा को , उसने ही तो जुटाया था ।
बिना दिए कुछ मूल्य किसी का , सब कुछ उससे पाया था ।
अफसोस उसे ही भुला दिया , जिसने सब कुछ लुटाया था ।
माया ठगनी है ही ऐसी , लोभ मोह में उलझाया था ।
यहाँ अपना पराया कोई नहीं , सबने बस भरमाया था ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
यह जग भी क्या है ? मुसिफरखाना है
मुसिफर खाना भी उसका है
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खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाना है...
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