आज के इस अफरा तफरी , और भीड़ भरे इस संसार में ।
जब भुलाते जा रहे कर्तव्यों को , और लुटाते जा रहे आदर्शो को ।
जब मारते जा रहे अपनी आत्मा , बेंचते जा रहे अपने ईमान को ।
बहुत मुश्किल हो गया है बचा पाना , अपने अन्दर के इन्सान को ।
बार बार हुंकारता है अन्दर का , बलशाली होता शैतान यहाँ ।
दर दर की ठोकर खाता है , मानव के अन्दर का इन्सान यहाँ ।
ऐसे में बहुत मुश्किल है अब , इंसानियत का अस्तित्व बचा पाना ।
व्यवसायिक होती इस दुनिया में , उसको अब जीवित रख पाना ।
लालच-क्रोध-घृणा अभिमानो के , वारो से उसे बचा पाना ।
अपने स्वार्थ की बलि बेदी से , उसको सकुशल लौटा लाना ।
फिर भी अंतिम छण तक उसको , मै जीवित रखने की ठान रहा ।
लिखकर कागज पर व्यथा अपनी , मै उसको कुछ सांसे लौटा रहा ।
1 टिप्पणी:
इस प्रपंच बाख पान मुश्किल है परन्तु जो बच पाता है वही जीतेन्द्र कहलाते हैं
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