जाने भी दो यारो यह तो , पूर्व नियत था नहीं पता क्या।
जब मानव अजर अमर नहीं , रिश्ते क्षणभंगुर हुए तो क्या ।
यह भूल तुम्हारी अपनी थी , अभिनय को सच मान लिया ।
रिश्तो के सौदागर को , तुमने नाहक अपना मान लिया ।
यह रंग मंच है जिस पर , अभिनय नाना प्रकार के होते है ।
हर शब्द यहाँ है पूर्वनियत , हर भाव यहाँ बे-मानी है ।
इस रंग मंच की दुनिया में , केवल चरित्र ही मरता है ।
मत उदास हो व्यर्थ यहाँ , अभिनेता जीवित रहता है ।
उसका क्या उसको प्रतिदिन , एक सा अभिनय करना है ।
तुम अश्रु गिराने लगे अगर , जीवन कहाँ फिर चलना है ।
तारीफ करो अभिनेता की , कितना जीवंत रहा अभिनय है ।
भ्रमित हो गए देख जिसे , वो कितना महान अभिनेता है ।....१७/०८/२००४
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर ....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,
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