जाने कितने सपने है , जाने कितनी मर्यादायें ।
जाने कितने पूरे होंगे , कितने धूल-धूसरित होंगे ।
जग में अगणित सपने हैं , अगणित हैं मर्यादा भी ।
कुछ तो दिखते पूरे पूरे हैं , कुछ टूटे फूटे खंडित भी ।
कुछ की होनी है नवरचना , कुछ भूले बिसरे यही पड़े ।
कुछ राहों में हैं साथ खड़े , कुछ जंगल में हैं कहीं पड़े ।
कुछ ठोकर बने हैं राहों में , कुछ धारा में मोहताज पड़े ।
कुछ अपने बल पर यहाँ खड़े , कुछ मरुभूमि में दबे पड़े ।
कुछ अपने पास बुलाते हैं , कुछ दूर से ही डरवाते हैं ।
कुछ के होते हैं अन्वेषण , कुछ के होते बस शोषण है ।
कुछ आपस में रहते संघर्षरत ,कुछ एक दूजे के पूरक हैं ।
कुछ की अपनी धाराये है , कुछ सब धाराओं में बहते है ।
कुछ बिलकुल मेरे अपने है, कुछ सारे जग के सपने हैं ।
कुछ अपनो के भी सपने है , कुछ सपनों में भी अपने है ।
जाने कितने पूरे होंगे , कितने धुल धूसरित होंगे ।
जाने कितने सपने हैं और , जाने कितनी मर्यादायें ।
किस किस का मै हाल बताऊँ , किस किस का मै नाम गिनाऊँ.........
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
आपके सपने जरुर पुरे होंगे ....
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