चाहतें हद से जब गुजरने लगी ,
न चाहते हुए भी नजर तुझपे पड़ने लगी ।
प्यासा था मै बहुत पहले से साकी,
अब दिल में भी तड़फ उठने लगी ।
यूँ तो खायी थी कसम न आयेंगे इधर ,
पर कदम मेरे खुद आ गए तेरे पास ।
अब आ ही गए हैं तो पिला दो मुझे ,
फिर करते रहना तुम बाकी हिसाब ।
पहले जब आकर पिया था यहाँ ,
मैंने माँगी थी तुमसे केवल शराब ।
गया जब घर और उतरा उतरा नशा ,
मैंने जाना कि उसमे मिली थी शबाब ।
तो आ ही गए हम अब फिर से यहाँ ,
आज नज़रों से ही तुम पिला दो शराब ।
बस आँखों ही आँखों से पिलाना मुझे ,
जाम छलके नहीं ना ही टूटे गिलास ।
कहो तो खुदा की मेहर गिरवी रखूँ ,
भरोसा रखो मुझ पर साकी तुम आज ।
आँखों ही आँखों से मै पीता रहूँगा ,
छुऊँगा नहीं जाम हाथों से आज ।
तमन्ना है मेरी यही बस ओ साकी ,
जो पहले पिया था फिर से पिला दो ।
कहो तो दुबारा नहीं आऊँगा मै ,
बस अबकी छका कर मुझे तुम पिला दो ।।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
10 टिप्पणियां:
bahut sundar......ati utaam
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत खूब।
वाह वाह वाह्……………बहुत ही सुन्दर और मनभावन रचना।
अरे वाह !
रचना और चित्र ...दोनों मिलकर प्रेमरस की वर्षा कर रहे हैं
बहुत सुन्दर भावमयी रचना..
बस अबकी छकाकर मुझे तुम पिला दो ।
बहुत बढिया...
क्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में स्वयं को ज्यादा सहज महसूस कर रहे हैं ?
prem ras me sarabor rachna.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
बहुत ही सुन्दर
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