रात अचानक जाने कैसे , याद मुझे तुम आये प्रियवर ।
खोया था मै अपने मन के , उठे खयालो में प्रियवर ।
कुछ भूली बिसरी यादे थी , कुछ बहुत पुरानी बाते थी ।
कुछ याद लौट कर आती थी , कुछ मन को मेरे सुहाती थी ।
फिर जाने कैसे तेरी यादे , बनकर आँधी सी छाने लगी ।
मुझको मेरे अंतर्मन तक , व्याकुल कर वो जाने लगी ।
यूँ तो जाने कितने दिन, वर्ष काल महीने बीत गए है ।
लेकिन शायद मेरे मन में , वो अब भी ताजे बने हुए है ।
माह जेठ था शायद वो , धरती व्याकुल प्यासी थी ।
तेरे अधरों की तपिश मुझे , पल में जलाने वाली थी ।
इससे पहले कि जलकर मेरा , हश्र पतंगे जैसा होता ।
तेरे प्रेम की अग्नि में , तपकर स्वर्ण मै शायद होता ।
दूर कही कुछ बदली छाई , बारिश संग वो लेकर आयी ।
लगे भींगने हम दोनों ही , जब बंद हो गयी बहनी पुरवाई ।
शायद सावन आया था वो , घनघोर घटा संग लाया था ।
उसके अविरल धारा ने फिर , कुछ मेरा अश्रु बहाया था ।
इससे पहले की अश्रु मेरे , खारा करते मीठी नदियों को ।
रोम रोम मेरा लगा ठिठुरने , अगहन की ठंडक आने लगी ।
जब तक आया पूस माह , तुम मुझसे दूर ही रहने लगे ।
माघ की ठंडक के संग शायद , राह नयी तुम चुनने लगे ।
फाल्गुन में भी मिले नहीं तुम , होली बदरंग सी बीती थी ।
लिए अबीर गुलाल मै बैठा था , सज रही तेरी जब डोली थी ।
यूँ तो गुजर गए है अब तक , कुछ वर्ष महीने दिन अरु काल ।
लेकिन मेरे मन में अब भी , शेष कही है तेरा हाल............. ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया रचना है आपकी..और साथ में ये तस्वीर तो अच्छी है
Dhanyawad bhai..
Aur is tasveer me to thoda yogadan aapka bhi hi
एक टिप्पणी भेजें