रिश्तो की आधारशिला पर , है टिकी सभ्यता मानव की ।
कुछ जन्मजात बनते रिश्ते , कुछ मिलते जन्म के बाद ही ।
कुछ रिश्ते स्वयं बन जाते हैं , कुछ मजबूरन लोग बनाते हैं ।
कुछ पल दो पल के होते रिश्ते , कुछ जीवन भर चल जाते हैं ।
कुछ जन्मजात बनते रिश्ते , कुछ मिलते जन्म के बाद ही ।
कुछ रिश्ते स्वयं बन जाते हैं , कुछ मजबूरन लोग बनाते हैं ।
कुछ पल दो पल के होते रिश्ते , कुछ जीवन भर चल जाते हैं ।
कुछ में बहती भावो की धारा , कुछ में होता व्यवसाय भरा है ।
कुछ कर्तव्यबोध जगाते है , कुछ परिजीवी सा चूसते जाते हैं ।
कुछ के मूल में होता तन , कुछ रिश्तो का आधार बनाता मन ।
कुछ रिश्तो के पीछे होता धन , कुछ रिश्ते चलते जाते बे-मन ।
कुछ सुद्ध लाभ की रखते चाह , कुछ रिश्तो दिखलाते हमको राह ।
कुछ अपना सर्वस लुटाये है , कुछ रखते है मन में बस डाह ।
कुछ आदेशो के पालक होते , कुछ हम पर आदेश चलाते है ।
कुछ रिश्ते दिल में बस जाते है ,कुछ मनमर्जी करते जाते हैं ।
इन्ही रिश्तो की आधारशिला पर , है टिकी सभ्यता मानव की....
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ..
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