हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शनिवार, 17 दिसंबर 2011

सिक्के के दो पहलू..

भाई मेरे मै क्या कहूँ , हर सिक्के के दो पहलू हैं ।
एक सामने दिखता है , एक छिपा रहता है पीछे ।
एक दिखाता जीत हमारी , एक छिपाता हार हमारी ।
एक लादता उपहारों से , एक काटता जाता जड़े हमारी ।
एक राह में फूल बिछाता , एक खोदता उसमे खायी ।
एक साथ कब दिखते हैं , सिक्के के दोनों पहलू भाई ।

हम स्वयं भी है सिक्के जैसे , दो रंग रूप है हममे समाये ।
चित भी अपना पट भी अपना , दोनों अपने मन को भाए ।


एक तरफ सब दया धर्म और , हैं नीति युक्त सब कर्म हमारे ।
एक तरफ जड़ बेईमानी की , मन के अन्दर कहीं जमाये ।
एक रूप है सबको दिखता , एक केवल अपनो को दिखता ।
तुम्हे चाहिए जैसा मै, वैसा तुम मुझको मानो भाई ।
मै तो सदा से कहता हूँ , दोनों पहलू देखो भाई ।
एक अकेला कहाँ है पूरा , कहाँ एक में सत्य समायी ।

आधी दुनिया बाकी हो जब , आधे में क्या मिलना भाई ।
आधी अधूरी बातो ने कब , जग में अपनी धाक जमाई ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

5 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक सुंदर अभिव्यक्ति...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हम स्वयं भी सिक्के जैसे....... खूब सटीक पंक्तियाँ रची हैं......

रेखा ने कहा…

सिक्के के दोनों ही पहलुओं को देखना आवश्यक तो है ही .....सार्थक रचना

www.ChiCha.in ने कहा…

hii.. Nice Post

Thanks for sharing


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Vishal Mishra ने कहा…

Sadar namaskar vivek bhai..
Main yahan kushal puravak hoon aur ishwar se kamana hai ki aap bhee swasth, kushal aur prasannchitt honge.
"Sikkae ke do pahalu" Bahut achchha likha hai bhai.
Ab mera job isi group ke news paper men ho gaya hai. Naidunia. Isakee sunday magazine (weekly) Lucknow men to aatee hai. So here i can open your blog.
Ab punah aapanee lekhani (Blog)ke jariye aapase juda rahungaa. :))

Yours
Vishal

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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