हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

रूठ कर जब मै चला...

रूठ कर जब मै चला , कुछ दूर तक चलता रहा। 
चोट दिल पर थी लगी , और घाव था रिसता रहा। 
मन था आहत मेरा , तेरे तीखे पैने कटाक्ष से। 
साथ ही अफसोस था , तेरे मूर्खतापूर्ण बात से। 
फिर अचानक रुक गया , मै ठिठक कर राह में। 
मन में आया देख लूँ , थोड़ा पलट कर राह में। 

क्या तुम्हे अफसोस है , अपने किये पर कुछ अभी। 
या अभी भी व्याप्त है , अहंकार तुममे अभी। 
देखा पलट कर मैंने जब , तुम थे वापस जा रहे। 
फिर अचानक यूँ लगा , कदम तेरे लड़खड़ा रहे। 
रोक ना पाया मै स्वयं को , तुम्हे डगमगाते देख कर। 
फिर चल पड़ा तेरी तरफ , तुझको अकेला देख कर। 

कैसे मै उसको छोड़ देता , जिसको सँभाला था सदा। 
तूने नादानियाँ पहले भी की , मै माफ़ करता रहा सदा। 
फिर आज भी तो है वही , हालात जाने पहचाने से। 
अपना तुझे माना सदा , कैसे रुक जाऊ फिर अपनाने से। 
लो लौट मै फिर आया अभी , भुला कर बीती बातो को। 
बस हो सके तो फिर न कहना , तीखी कडुवी बातो को। 

फिर ना हो हालात यूँ , फिर ना टूटे दिल कभी। 
रिश्ते तोड़ना आसान है , पर निभाना मुश्किल सभी। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

ये जरुरी तो नहीं..

ये जरुरी तो नहीं , 
हर बात तुम्हे समझायी जाय। 
और वो भी तब ,
जब तुम खुद समझदार हो ,
और यह जताने का कोई मौका नहीं गँवाते। 

फिर बताओ कैसे तुम चूक जाते हो ?
दिलो में धड़कते एहसासो को समझ नहीं पाते हो।
साथ ही तुम समझ क्यों नहीं पाते ,
रिश्तो को चलाने और मिठास बनाये रखने को ,
हमें कई बार वैसा कुछ करना होता है ,
जो सामान्यतया करना हमारी फितरत नहीं होता है।

और ये सब बाते ,
ना जाने कितनी बार समझायी है मैंने तुम्हे। 
कभी प्यार से ,
कभी उलाहने से ,
तो कभी तुमसे झगड़ कर ,
तुम्हे रिश्तो की कगार से वापस केंद्र में लाते हुए। 

और हर बार ,
हर एक बार तुमने ,
कभी भी अपनी कमियों का एहसास ना करते हुए ,
यही कहा सदा ही तुमने,
कि तुम ही सही थे हमेशा ,
क्योंकि दुनियादारी तुम मुझसे ज्यादा समझते हो। 

तो फिर ऐसे समझदार इंसान को ,
ये जरुरी तो नहीं की हर बात समझायी जाय। 
या खुद से समझने वाली ,
हर एक छोटी छोटी बात बार बार बतायी जाय। 

और अब भी अगर तुम मुझको ,
समझ पाने से चूक जाओ ,
तो ये जरूरी तो नहीं हमेशा ,
अपनी ही भावनाओं की बलि चढ़ायी जाय। 

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रविवार, 23 मार्च 2014

क्यों आती है याद तेरी...

क्यों आती है याद तेरी , इतनी ज्यादा मुझको आज। 
आस-पास ही है तू मेरे , फिर क्यों मै इतना आज उदास । 
याद आ रहे है वो पल , जो हमने साथ बिताये थे । 
हाथो में था  हाथ तेरा , धड़क रहे थे दो दिल पास।  
ओंठो पर एक प्यारी सी , तपिश जो मैंने जानी थी। 
तेरे दिल की धड़कन को , बस मैंने अपनी मानी थी। 

खोया था जब ख्वाबों में , कोई जाग रहा था मेरे पास। 
फिर से जी पाऊँ वो पल , बस मन में मेरे यही है आस। 
इसी लिए मुझे आती है , हर पल तेरी इतनी याद। 
तेरे बिना हो रहा है देखो , मेरा दिल आज उदास। 
चुभ रहा कहीं अंदर मेरे , एकाकीपन का एहसास। 
आ जाओ फिर पास मेरे , क्यों तड़फ़ाते इतना आज। 

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मंगलवार, 11 मार्च 2014

श्रापित...

क्या कहे किससे कहें , क्यों कहे हम निज व्यथा। 
व्यर्थ है कहना यहाँ कुछ , जहाँ लोग सुनते हैं कथा। 
हाँ कथा ही सुन रहे सब , भूल कर निज संवेदना। 
हो गए जड़वत जहाँ सब , क्या वो समझेंगे वेदना। 
यदि सत्य को भी सत्य का , जब पड़े देना प्रमाण। 
समझ लीजै तब वहाँ , बस निकलने वाले हैं प्राण। 

आम क्या और खास क्या , जब यहाँ दोनों व्यथित। 
कौन पोंछे आँसू किसके , राज्य ही हो जैसे श्रापित। 
किस लिए किसके लिए , हम करें फिर कुछ यहाँ। 
मृत्यु का ही उत्सव मानते , लोग हों जब सब यहाँ। 
फिर कौन शोषित कौन शोषक , ये प्रश्न ही बेकार है। 
स्वछंदता से कर रहे जब , सब यहाँ व्याभिचार हैं। 

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शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

चार दिनों की बाते...

चार दिनों की मींठी बाते , प्यार मोहब्बत रिश्ते नाते। 
और भुला देते है वो फिर , दो पल में ही सारी बाते। 
याद नहीं रह पाता उनको , अपनो का दिल से अपनापन।
याद भले रहता है उनको , कटु क्षण के कुछ तीखे पल।
उन्हें कहें हम क्या यारो , संवेदन शून्य है जो यारो। 
उनका संग साथ में होना क्या , उन्हें पाना क्या और खोना क्या। 

वो भटक रहे ज्यों कटी पतंग , कभी लटके यहाँ कभी लिपटे वहाँ। 
कभी हवा के झोंको में बह निकले , कभी गिरे यहाँ कभी उड़े वहाँ। 
तुम भी क्या दिल पर ले बैठे , गैरो की बे-गैरत को। 
तुम जियो शान से यारा , अपनो में अपनी खुद्दारी को। 
ये कोई चार दिनों की बात नहीं , ये जीवन भर की कहानी है। 
यहाँ अपना पराया कोई नहीं,  सब मतलब की दुनियादारी है। 

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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

यादों के पुल पर अकेले..

ये सच है तुम्हारी यादों में ,
बिखर जाता हूँ कई बार। 
ये भी सच है रह रह कर ,
साथ बिताये लम्हे याद आते है बार बार।
ये भी सच है कि याद आते ही ,
खो जाता हूँ उन्ही खट्टे मीठे लम्हो में हर बार। 

मगर यह भी सच है ,
तुम भुला चुके हो अपना अतीत मेरे यार। 
और जब यादों की एक छोर टूट जाए ,
या पुल की रस्सियों की एक तरफ गाँठ खुल जाए। 
तो मुश्किल हो जाता है अकेले ,
यादों के पुल को बिना चोट खाये पार कर पाना। 

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रविवार, 2 फ़रवरी 2014

कंक्रीट के जंगलो में...

कंक्रीट के जंगलो में , जीने की मारा-मारी है। 
रोज खोदना कुआँ यहाँ , प्यास अगर बुझानी है। 
क्या हक़ तेरा क्या है मेरा , बात ही करना नादानी है। 
चंडाल चौकड़ी की केवल , चलती यहाँ मनमानी है। 
यहाँ अपना पराया गड्मड है , मतलब की दुनियादारी है। 
रिश्ते नातो को समय नहीं , आभासी दुनिया से बस यारी है। 

क्या यही है जीवन जो हम जीते ,भूल गये हम कब हैं जीते ?
आँख खुली शुरू भागम-भाग , क्यों यंत्र मानव सा हम जीते ?
पैसा-पैसा केवल पैसा , है किसके लिए ये सारा पैसा ?
जिनके लिए हम चाहते पैसा , क्या उन्हें नजदीक है लाता पैसा ?
ना स्वाभिमान ना दिलो में मान , बेच दिया हम सबने सम्मान। 
गला काट जीवन की होड़ में , बस भरते हम एक दूजे के कान। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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